ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे

Saturday, August 15, 2009

बड़ी अजनबी लगती हैं ये दुनिया

जन्माष्टमी पर
मंदिरों के अन्दर लम्बी लाइने
बाल गोपाल को झुला झुलाने के लिए
मन्दिर के बाहर लम्बी लाइने
मेले कुचले कपड़ो मे
प्रसाद मांगते बाल गोपाल
जन्माष्टमी पर
मन्दिर के अन्दर
कृष्ण के साथ परस्त्री को पूजती सुहागिने
मन्दिर के बाहर हाथ मे हाथ डाल कर घुमते
नौजवान अविवाहित जोडे पर टंच कसती सुहागिने
१५ अगस्त पर
आज़ादी के जश्न को मानते परिवार
नौकरानी के देर से आने पर आहत

बड़ी अजनबी लगती हैं ये दुनिया

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