आये थे कृष्ण एक बार वापस विरंदावन
कहा था उन्होने राधा से
" तुम्हे ही चाहता हूँ मै प्रिये
लौटा हूँ
फिर एक बार पाने के लिये प्यार तुम्हारा "
बोली राधा
" मेरा प्यार तो सदा ही है तुम्हारा
पर क्या तुम रुक्मणी को छोड़ कर आये हों "
बोले कृष्ण " रुक्मणी पत्नी है और राधा तुम प्यार हों मेरा "
" अब वापस तो नहीं जाओगे " राधा का प्रश्न था
" नहीं वापस तो जाना है , संसार का कर्म निभाना है"
बोली फिर राधा " जाओ लॉट जाओ
रुक्मणी को छोड़ कर आते तो मेरा प्यार पाते
इस युग मे तो क्या किसी भी युग मे मुझे तक
वापस आओगे मेरा प्यार पाओगे पर
जैसे मै तुम्हारी हूँ
तुमको भी केवल मेरा बन कर रहना होगा
मुझे प्यार करना और रुक्मणी से विवाह करना
ये पहली गलती थी और
फिर वापस आकर मेरे प्यार की कामना
दूसरी ग़लती है तुम्हारी "
वापस चले गए कृषण
और जाकर अपनी इस यात्रा का विवरण
इतिहास से ही मिटा दिया
क्योकि उन्हें तो भगवान बनना था
मिटा दिया नारी की जागरुकता को
और पुरुष कि कायरता को
उन्होने इतिहास के पन्नो से
क्योकि इतिहास तो हमेशा पुरुष ही लिखते है
फिर एक दिन
फिर मिले वह राधा से
कई युगो बाद
एक मंदिर मे
कहा राधा ने
देखो आज मै भी वहीं स्थापित हूँ
जहां तुम स्थापित हो
पर मेरा नाम तुम्हारे नाम से पहले
लेते है लोग इस युग के
क्योकी उस युग मे मै सही थी
प्रेम एक वक़्त मे केवल एक से करना
हों सकता है फिर दुसरे युग मे
तुम पराई स्त्री के साथ नहीं
रुक्मणी के साथ पूजे जाओ
तुमने जो कुछ पाया
मुझे भी वही मिला
अलग अलग रास्तो से
एक ही जगह पहुंच गए है हम
पर है हम " राधा कृष्ण "
क्योकि मैने निष्ठा से
सिर्फ तुमको चाहा
और
अपना सम्मान मैने
स्वयम अर्जित किया
ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
COPYRIGHT 2007.© 2007. The blog author holds the copyright over all the blog posts, in this blog. Republishing in ROMAN or translating my works without permission is not permitted. Adding this blog to Hindi Aggregators without permission is voilation of Copy Right .
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे
Thursday, June 28, 2007
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