पढ़ लिख कर नौकरी की
आज्ञाकारी पुत्री बन कर विवाह किया
आज्ञाकारी पुत्रवधू बन कर वंशज दिया
और अब सहिष्णु पत्नी बनकर
पति की गलतीयों पर पर्दा डालती हूँ
मै खुद क्या हूँ , मेरा अस्तित्व क्या है
आज भी मै अपने को ढ़ूढ़ती हूँ
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एका एक आईना दिखा मुझे
और आज्ञाकारी पुत्री का चोला पहने
दिखी एक लड़की जिसने अपनी शादी मे
लाखो खर्च करवाये अपने पिता के
जिसने पाया एक पति ,पिता के कमाए हुये धन से
और आज्ञाकारी पुत्रवधू का चोला पहने दिखी एक औरत ,
जिसने ससुर के पैसे से मकान अपना ख़रीदा ,
अपने मकान को, घर पति के
माता पिता का ना बनने दिया
और सहिष्णु पत्नी का चोला पहने दिखी
एक विवाहिता , जिसने अपने पति को
हमेशा ही एक सामाजिक सुरक्षा कवच समझा
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इससे पहले कि आइना और कुछ दिखता
मेरी महानता का आवरण और उतरता
कोई देख पता कि मै भी केवल एक साधारण स्त्री हूँ
जो केवल अपने स्वार्थ के लिये जीती है
मैने आइने पर फिर एक पर्दा डाला
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दो चुटकी सिंदूर माँग मे भरा
ससुर के पैर छुये
पिता को कुशलता का समाचार दिया
और पति के साथ उसकी लंबी कार मे
बेठ कर दूसरा या तीसरा हनीमून मनाने
मै चल पडी ।
पति के पर - स्त्री गमन को
वासना कह कर , पुनेह उससे संबंध बनाने के
निकृष्टतम समझोते को करने
ताकि ऐशोआराम से बाक़ी जिन्दगी
अपनी महानता का गुणगान करते
सुनते बीते
ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
COPYRIGHT 2007.© 2007. The blog author holds the copyright over all the blog posts, in this blog. Republishing in ROMAN or translating my works without permission is not permitted. Adding this blog to Hindi Aggregators without permission is voilation of Copy Right .
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे
Thursday, December 20, 2007
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