साहित्यकार बनने कि होड़ मे
अपने को सही बताने कि होड़ मे
सब भूल गए संवेदनशील होना
भूल गए कि एक बच्ची "अरुशी"
मरी नहीं मारी गयी हैं
भूल गये कि उसके लिये
कोई उसका अपना
शायद ही आंसूं बहा रहा हो
अच्छे साहित्यकार ना साही सही
एक अच्छे इंसान ही बन जाते
दो आंसू उस "अरुशी" के लिये बहा लेते
दो बूंद स्याही की उसके लिये भी खर्च देते
दो शब्द उसकी आत्मा कि शांती के लिये
लिख देते ।
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