ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे

Tuesday, October 06, 2009

स्वच्छ हिन्दुस्तान की नेम प्लेट

स्वच्छता का दम भरते हो

ज़रा बताओ फिर क्यों

एक पिता की दो संतान

अगर दो माँ से हैं

तो आपस मे कैसे

और क्यों विवाह

करती हैं

मौन ना रहो

कहो की हम यहाँ

इस हिन्दुस्तान मे

इसीलिये रहते हैं

क्युकी हम यहाँ

सुरक्षित हैं

संरक्षित हैं

कानून यहाँ के

एक होते हुए भी

हमारी तरफ ही

झुके हुए हैं

कहीं और जायगे

तो कैसे इतना

प्रचार प्रसार कर पायेगे

बस हिन्दुस्तान मे ही ये होता हैं

सलीम को यहाँ सलीम भाई

नारज़गी मे भी कोई सुरेश कहता हैं

तुम भाई हो हमारे तो भाई बन कर रहो

हम रामायण पढे

तुम कुरान पढो

ताकि हम तुम कहीं ऊपर जाए

तो राम और अल्लाह से

नज़र तो मिला पाये

ऐसा ना हो की

पैगम्बर की बात फैलाते फैलाते

तुम उनकी शिक्षा ही भूल जाओ

हम को हमारी संस्कृति ने यही समझया हैं

जो घर आता हैं

चार दिन रहे तो मेहमान होता हैं

और रुक ही जाए

तो घर का ही कहलाता हैं

घर के हो तो घर के बन कर रहो

हम तुम से रामायण नहीं पढ़वाते हैं

तुम हम से कुरान मत पढ़वाओ

धार्मिक ग्रन्थ हैं दोनों

पर अगर किताब समझ कर पढ़ सके

कुछ तुम सीख सको

कुछ हम सीख सके

तो घर अपने आप साफ़ रहेगा

और स्वच्छ हिन्दुस्तान नेम प्लेट की

उस घर को कोई जरुरत नहीं होगी ।

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