ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे
Thursday, August 12, 2010
तिरंगा
ए मेरे तिरंगे जब तू लहराता हैं ओठो पे मुस्कान लाता है जब तू झुक जाता है आंखे नम कर जाता है ना जाने कितनी भाषाओ , धर्मो , जातियो को तू देता है एक छाँव और देता है एक शान बहुतो को बन के कफ़न उनका एहसास ही तेरा काफी होता है वंदे मातरम् महसूस करने के लिये
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