आज फिर कुछ पुराने शब्दों को पढ़ा
मन कुछ भटका , दर्द का अहसास भी हुआ
पर
फिर अपने पर फक्र भी हुआ
नहीं कर सका था एक भी शब्द
तब भी मुझे विचलित
चलने को उस रास्ते पर
जिसकी मंजिल केवल और केवल अँधेरा होती हैं
खुद को रोकना नहीं था तभी भी आसान
पर आदत हैं मुश्किल राह पर चलने की
और सही के साथ रहने की
मन कुछ भटका , दर्द का अहसास भी हुआ
पर
फिर अपने पर फक्र भी हुआ
नहीं कर सका था एक भी शब्द
तब भी मुझे विचलित
चलने को उस रास्ते पर
जिसकी मंजिल केवल और केवल अँधेरा होती हैं
खुद को रोकना नहीं था तभी भी आसान
पर आदत हैं मुश्किल राह पर चलने की
और सही के साथ रहने की
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