बहुत दुखी रहते है वह बच्चे
जिन्हे अपने घर से ज्यादा
दूसरो के घर भाते है
जाते तो बहुत ख़ुशी से हें
पर फिर लौट नहीं पाते है
और किलस कर रह जाते है
जब
कभी व्यंग से
कभी आदर से
घरवाले उन्हे "एंन आर आई "बुलाते है
"एंन आर आई " बना कर
पराया उन्हे हम करते जाते है
और फिर उनसे ही उम्मीद
क्यों हम लगाते है
की हमारी योजनाओं मै
पैसा वह लगाएगे
मातृ भूमि का कर्ज़
वह चुकायेगे
अपनी गलतीयों को
कब तक अपने बच्चो पर हम डालेगे
आज़ाद हुए तो सालो हों गये
बच्चो को आजादी
कब हम दिलवा पाएगे
पराये देश से
कब उन्हे वापस घर ला पाएगे
क्यों नही अपने घरो मे
कुछ काम और हम बढाते है
उन्हे वापस बुलाने के लिये
हम सढ़क क्यों नयी नही बनाते है
बच्चे तो हमेशा ही
रास्ता भटक जाते है
फिर क्यों अंधेरे रास्तो पर
दीये रखना हम भूल जाते है
ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
COPYRIGHT 2007.© 2007. The blog author holds the copyright over all the blog posts, in this blog. Republishing in ROMAN or translating my works without permission is not permitted. Adding this blog to Hindi Aggregators without permission is voilation of Copy Right .
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे
Saturday, May 26, 2007
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