ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे

Tuesday, August 21, 2007

कदमो की छाप

नेट पर तुम्हारे
कदमो की छाप ने
दिखाया की तुम
यहाँ आये थे
जानने की इच्छा
कि मै क्या कर रही हूँ
ओर कैसी हूँ
लाती है तुम्हे यहाँ
पर क्या होता है
इस आने से
अगर नहीं होगी
मेरे कदमो की छाप यहाँ
तो क्या महसूस करोगे

की मै विलीन गयी
ओर अगर एसा हुआ

तो तुम्हारा क्या होगा
क्या आते रहोगे फिर भी
यहाँ मेरे कदमो की छाप
पर चलते रहने के लिये

जब तक तुम खुद ना
विलीन हों जाओ
क्या कभी तुम्हारी इच्छा होती है
जो पद छाप हम अकेले
छोड़ रहे है एक साथ छोड़ते
ओर अलग अलग विलीन ना होते
विलीन होता वह दर्द
जो मिलता है एक दूसरे कि
कदमों की छाप पर
अकेले चलने से