ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे

Monday, November 03, 2008

हिन्दी कठपुतली बन कर रह गयी हैं , हिन्दी ब्लोगिंग मे

अपने हम उम्र को जो बुजुर्ग कहते हैं
सारी उम्र बच्चे ही बने रहना चाहते हैं
अपने अंदर के बच्चे को जीवित रखना
आसन नहीं होता पर
हर समय बच्चा बने रहना
भी क्या सही होता ??
ऐसा लगता हैं
जैसे कि आप चाहते हो
सब बस आप पर ही ध्यान दे
आप को ही सहेजे समेटे
और आप इठलाते रहें
तुतलाते रहे
मुहं मे अंगूठा डाल कर
चूसते रहे और
दूसरो को ठेंगा दिखाते रहे
मन मे भ्रम आप ने है पाला
कि आपका ही शायद जन्म सिद्ध अधिकार हैं
दूसरो कि समय असमय खिल्ली उड़ाने का
और जो प्रतिवाद करे
उस पर तोहमत लगाने का
कि उसको हास्य समझ नहीं आता
या उसको तो हँसना ही नहीं आता
किसी कि व्यक्तिगत जीवन शैली को
प्रश्न चिन्ह करने का अधिकार शायद
हिन्दी ब्लॉगर होते ही आप को
मिल जाता हैं
और शायद इसीलिये
हिन्दी कठपुतली बन कर रहगयी हैं
हिन्दी ब्लोगिंग मे
कुछ साहित्यकार हैं कुछ पत्रकार हैं
कुछ पुराने हैं कुछ पुरानो के ताबेदार हैं
डोर से जिन्होने बाँधा हैं हिन्दी कि ब्लोगिंग को
जब मन करेगा वो हिलाएगे
आप ताली ना बजाओ तो चमेली का तैल लगायेगे
अच्छा लिखो तो पैरोडी बनाते हैं
उनको पसंद ना आए तो अपरिपक्व लेखन बताते हैं
कविता विधा नहीं हैं ब्लोगिंग की बार बार वो समझाते हैं
ब्लॉग को चिट्ठा बता कर मेड इन इंडिया का लेबल जो लगाते हैं

कहां जाए वो बेचारे जो केवल और केवल ब्लॉगर हैं
कभी ये क्यूँ नहीं बताते हैं

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