परिवार कि बात सबसे ज्यादा करते है जो
ब्लोगिंग को खेमो मे बाँटते हैं वो
पहले भाषा से बांटा फिर लिंग से बांटा
अब खेमो मे बांटा और कब तक चलेगा ये सब
पता नहीं अब तो वितिष्ना सी होती हैं
इन खेमो से इन खंडो से
और इस दोहरी मानसिकता से
जो फैसला नहीं कर पाती
की उसको जिन्दगी से चाहिये क्या
No comments:
Post a Comment