काश ज़िन्दगी भी एक स्लेट होती
जब चाह्ती लिखा हुआ पोछ्ती
और नया लिख लेती
चलो ज़िन्दगी ना सही
मन ही स्लेट होता
पोछ सकती , मिटा सकती
उन जज्बातो को
जो पुराने हो गये हें
पर ज़िन्दगी की चाक तो
भगवान के पास है
और मन पर पड़ी लकीरें हो
या स्लेट पर पड़ी खुरसटें हो
धोने या पोछने से
नहीं हटती नहीं मिटती
पुरानी पड़ गयी स्लेट को
बदलना पड़ता है
विवश मन को
भुलाना होता है
जब चाह्ती लिखा हुआ पोछ्ती
और नया लिख लेती
चलो ज़िन्दगी ना सही
मन ही स्लेट होता
पोछ सकती , मिटा सकती
उन जज्बातो को
जो पुराने हो गये हें
पर ज़िन्दगी की चाक तो
भगवान के पास है
और मन पर पड़ी लकीरें हो
या स्लेट पर पड़ी खुरसटें हो
धोने या पोछने से
नहीं हटती नहीं मिटती
पुरानी पड़ गयी स्लेट को
बदलना पड़ता है
विवश मन को
भुलाना होता है
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