कितनी शामे बीती
कितनी राते आयी
पर
वह सुबह नहीं आयी
जब बीती शाम
और
बीती रात की
याद ना आयी
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समझोते की चारपाई तुमने बिछाई वो सोई
तुम भी अधूरे उठे वो भी अधूरी उठी
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खुद ने कहा , खुद ने सुना
दस्ताने मुहब्बत यूं ही
महसूस किया
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जिन्दगी की धूप छाँव मे धूप ने इतना तपाया
कि छाँव की आदत ही नहीं रही मुझको ।
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पल्ले मे बंधता है अधिकार,
मुठ्ठी मे बंधता है प्यार
मुठ्ठी भर प्यार ही देता है
फिर जिन्दगी संवार
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मंदिर मे राधा को पूजते है जो
जिन्दगी मे राधा को दुत्कारते है वो
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धूप मे छाँव मे संग मे साथ मे
मन मे तन मे आस हैं प्यास है
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कभी कभी जिन्दगी मे कुछ ऐसे रिश्ते भी होते हैं
जो हमारे नहीं होते पर हम याद उन्हे ही करते हैं
कितनी राते आयी
पर
वह सुबह नहीं आयी
जब बीती शाम
और
बीती रात की
याद ना आयी
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समझोते की चारपाई तुमने बिछाई वो सोई
तुम भी अधूरे उठे वो भी अधूरी उठी
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खुद ने कहा , खुद ने सुना
दस्ताने मुहब्बत यूं ही
महसूस किया
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जिन्दगी की धूप छाँव मे धूप ने इतना तपाया
कि छाँव की आदत ही नहीं रही मुझको ।
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पल्ले मे बंधता है अधिकार,
मुठ्ठी मे बंधता है प्यार
मुठ्ठी भर प्यार ही देता है
फिर जिन्दगी संवार
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मंदिर मे राधा को पूजते है जो
जिन्दगी मे राधा को दुत्कारते है वो
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धूप मे छाँव मे संग मे साथ मे
मन मे तन मे आस हैं प्यास है
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कभी कभी जिन्दगी मे कुछ ऐसे रिश्ते भी होते हैं
जो हमारे नहीं होते पर हम याद उन्हे ही करते हैं
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हर कवियत्री को गर एक इमरोज मिलता
तो हर कविता मे अमृता होती
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