बहुत दुखी रहते है वह बच्चे
जिन्हे अपने घर से ज्यादा
दूसरो के घर भाते है
जिन्हे अपने घर से ज्यादा
दूसरो के घर भाते है
जाते तो बहुत ख़ुशी से हें
पर फिर लौट नहीं पाते है
और किलस कर रह जाते है
जब
कभी व्यंग से कभी आदर से
घरवाले उन्हे "एंन आर आई "बुलाते है
"एंन आर आई" बना कर
पराया उन्हे हम करते जाते है
और फिर उनसे ही उम्मीद
क्यों हम लगाते है
कि हमारी योजनाओं मे
पैसा वह लगाएगे
मातृ भूमि का कर्ज़
वह चुकायेगे
अपनी गलतीयों को
कब तक अपने बच्चो पर हम डालेगे
आज़ाद हुए तो सालो हों गये
बच्चो को आजादी
कब हम दिलवा पाएगे
पराये देश से
कब उन्हे वापस घर ला पाएगे
क्यों नही अपने घरो मे
कुछ काम और हम बढाते है
उन्हे वापस बुलाने के लिये
हम सढ़क क्यों नयी नही बनाते है
बच्चे तो हमेशा ही
रास्ता भटक जाते है
फिर क्यों अंधेरे रास्तो पर
दीये रखना हम भूल जाते है
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