ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे

Friday, December 19, 2008

फिर क्यों अंधेरे रास्तो पर दीये रखना हम भूल जाते है

बहुत दुखी रहते है वह बच्चे
जिन्हे अपने घर से ज्यादा
दूसरो के घर भाते है

जाते तो बहुत ख़ुशी से हें
पर फिर लौट नहीं पाते है

और किलस कर रह जाते है

जब
कभी व्यंग से कभी आदर से
घरवाले उन्हे "एंन आर आई "बुलाते है

"एंन आर आई" बना कर
पराया उन्हे हम करते जाते है
और फिर उनसे ही उम्मीद
क्यों हम लगाते है

कि हमारी योजनाओं मे
पैसा वह लगाएगे
मातृ भूमि का कर्ज़

वह चुकायेगे

अपनी गलतीयों को
कब तक अपने बच्चो पर हम डालेगे
आज़ाद हुए तो सालो हों गये
बच्चो को आजादी
कब हम दिलवा पाएगे

पराये देश से
कब उन्हे वापस घर ला पाएगे

क्यों नही अपने घरो मे
कुछ काम और हम बढाते है
उन्हे वापस बुलाने के लिये
हम सढ़क क्यों नयी नही बनाते है

बच्चे तो हमेशा ही
रास्ता भटक जाते है

फिर क्यों अंधेरे रास्तो पर
दीये रखना हम भूल जाते है

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