ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे

Tuesday, October 05, 2010

वह आज की नारी है

वह आज की नारी है
हर बात मे पुरुष से उसकी बराबरी है
शिक्षित है कमाती है
खाना बनाने जैसे
निकृष्ट कामो मे
वक़्त नहीं गवाँती है
घर कैसे चलाए
बच्चे कब पैदा हो
पति को वही बताती है
क्योकि उसे अपनी माँ जैसा नहीं बनना था
पति को सिर पर नहीं बिठाना था
उसे तो बहुत आगे जाना था
अपने अस्तित्व को बचाना था
फिर क्यों
आज भी वह आंख
बंद कर लती है
जब कि उसे पता है
की उसका पति कहीँ और भी जाता है
किसी और को चाहता है
समय कहीं और बिताता है
क्यों आज भी वह
सामाजिक सुरक्षा के लिये
ग़लत को स्वीकारती है
सामाजिक प्रतिष्ठा के लिये
अपनी प्रतिष्ठा को भूल जाती है
और पति को सामाजिक सुरक्षा कव्च
कि तरह ओढ़ती बिछाती है
पति कि गलती को माफ़ नहीं
करती है
पर पति की गलती का सेहरा
आज भी
दूसरी औरत के सिर पर
रखती है
माँ जैसी भी नहीं बनी
और रुढ़िवादी संस्कारों से
आगे भी नहीं बढी.
फिर भी वह चीख चीखकर कहती है
मै आज की नारी हूँ
पुरुष की समान अधिकारी हूँ

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