वर्जनाएं सब स्त्री के लिये
गर्जनाये सब पुरुष के लिये
गर्जना अगर कोई स्त्री करती हैं
पुरुष जैसी वो कहलाती हैं
भाव और अभिव्यक्ति तक
लिंग आधरित विभाजित हैं
कैसी विडम्बना हैं
जन्म से जो स्वतंत्र हो
मांगती हैं
स्वतंत्र होने का अधिकार
और
ऐसा करते ही
अपना अस्तित्व खो देती हैं
और पुरुष जैसी होगयी
का तमगा पाती हैं
गर्जनाये सब पुरुष के लिये
गर्जना अगर कोई स्त्री करती हैं
पुरुष जैसी वो कहलाती हैं
भाव और अभिव्यक्ति तक
लिंग आधरित विभाजित हैं
कैसी विडम्बना हैं
जन्म से जो स्वतंत्र हो
मांगती हैं
स्वतंत्र होने का अधिकार
और
ऐसा करते ही
अपना अस्तित्व खो देती हैं
और पुरुष जैसी होगयी
का तमगा पाती हैं
4 comments:
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...नारी के दर्द को बहुत ख़ूबसूरत शब्द दिए हैं...
स्वतंत्रता हर का अधिकार
सुन्दर शब्द
सुन्दर व सार्थक रचना ..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
nice words
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