ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे
Monday, December 05, 2016
कमबख्त वक्त
ना वो छोड़ कर आगे बढ़े थे
ना वो छोड़ कर आगे बढ़ी थी
बस कमबख्त वक्त
दोनों को
अलग अलग किनारो पर
छोड़ कर
कहीं बहुत आगे बढ़ गया था
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