ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे

Thursday, January 02, 2020

दूरियों की परिभाषा

तुमसे प्यार पाना
मेरा अधिकार न हो
क्या फरक पड़ता हैं
तुम्हे प्यार करते रहना
हमेशा से  मेरा अधिकार है
इस अधिकार को
कौन मुझे से छीन सकता हैं
ना समाज , ना तुम
बस ईश्वर की इच्छा
दूरियों की परिभाषा हैं


Saturday, March 09, 2019

यही हमारी जीत हैं

यही हमारी जीत हैं


नहीं भूला हैं ये देश
एक भी वो कुकर्म
जो सेनिको के साथ हुआ ,
क्यों तब कुछ नहीं कर सके
क्युकी नहीं जानते थे हम
बर्बरता सीमा को
भी लाँघ देगा पड़ोसी ,
अब जान चुके हैं
इसलिये तुरंत कार्यवाही हुई
" अभिनन्दन " की वापसी
सुनिश्चित करने की।
जाबांजो की जान की कीमत
कौन लगा सकता हैं
देश और नागरिक कुछ भूलते नहीं
बस शांत रहते हैं
क्युकी शान्ति का पाठ
घुट्टी में हमें पिलाया जाता हैं
विश्व शांति के रखवाले
अब अपने जाबांजो के साथ
बर्बरता नहीं होने दे रहे हैं

यही हमारी जीत हैं

Wednesday, November 21, 2018

दावत

मृत काया  पर
गिद्ध दावत करते  हैं। 
मृत काया के पैसो पर
इंसान दावत करते हैं।


Monday, December 26, 2016

ओढ़ ली प्यार की चादर

बीतते  समय के साथ
ना कोई याद धुंधली हुई
ना प्यार की शिद्दत कम हुई
बस कुछ बदला तो इतना
अब प्यार करने
महसूसने के लिये
तुम्हारी कमी नहीं महसूस होती
तुम्हारे लिये मेरे प्यार ने
तुम्हारी कमी को भी जीत लिया
प्यार ने मुझे अपने में समेट लिया
ओढ़ ली प्यार की  भीनी भीनी
अभिनव चादर अब  मैने

Monday, December 05, 2016

कमबख्त वक्त

ना वो छोड़ कर आगे बढ़े थे
ना वो छोड़ कर आगे बढ़ी थी
बस कमबख्त वक्त
दोनों को
अलग अलग किनारो पर
छोड़ कर
कहीं बहुत आगे बढ़ गया था

Tuesday, March 29, 2016

विधि की विडंबना देखिये


अब इंसान नहीं मरते हैं
धर्म के अनुयाई मरते हैं 

विधि की विडंबना देखिये 
जब बच्चा पैदा होता हैं 
नर्स पैर में 
माँ के नाम का टैग 
बाँध देती हैं 
माँ की गोद में देते ही 
माँ के नाम का टैग उतार देती हैं 


 
बड़ा सही तरीका हैं 
माँ नाम पैरो तले रौंदने का 
फिर उसको उतार कर फेंकने का 

विधि की विडंबना देखिये 
माँ की गोदी में आते ही 
धर्म बड़ा हो जाता हैं 
जाति प्रधान हो जाती हैं 
माँ का नाम फिर कहीं खो ही जाता हैं 

शायद इसीलिये मरने वाला 
भारत माँ का लाल नहीं रह जाता हैं 


विधि की विडंबना देखिये 
चाँद और मॉर्स पर जीवन खोजने वाले 
अपने धरती पर लहू बहाते हैं 

Saturday, February 13, 2016

खून खौलता हैं

बड़ी हंसी आती हैं जब 
एक कन्हैया 
यूनिवर्सिटी को 
शिक्षा मंदिर कह देने से 
भड़क जाता है 

बड़ी हंसी आती हैं जब 
कोई कानून से मिली फांसी को 
ग़ैर क़ानूनी बताता हैं 
और एनकाउंटर पर 
कानून की बात करता हैं 

बड़ी हंसी आती हैं जब 
२५ साल के युवा 
बच्चे कहलाते हैं 

बड़ी हंसी आती हैं जब 
पढ़ाई के नाम पर स्कॉलर शिप 
जाति आधरित दिये जाते हैं 

बड़ी हंसी आती हैं जब 
सालो स्कॉलर शिप फेलोशिप पाने वाले 
आत्म निर्भरता का पाठ पढ़ाते हैं 

बड़ी हंसी आती हैं जब 
प्राइवेट सेकटर में 
रिजर्वेशन की बात होती हैं 

बड़ी हंसी आती हैं जब
सरकारी खजाने को लूटने वाले 
नयी सरकार को असहिष्णु बताते हैं 

लेकिन 
खून खौलता  हैं 
जब देश को कोई गरियाता हैं 
किसी शहीद सैनिक की जगह 
एक टेररिस्ट को शहीद 
और  दूसरे टेररिस्ट  को 
देश की बेटी 
बताया जाता हैं 

Tuesday, December 29, 2015

जीवन चल रहा हैं साँसे भी

अनगिनत रिश्तो में बंधे तुम
मुझ से भी एक रिश्ता बंधा
नहीं निभाया
क्युकी अनगिनत रिश्तो में
उस एक रिश्ते की अहमियत
कुछ नहीं थी
अलग होने का दर्द
दोनों ने सहा शायद
किसी ने ज्यादा
किसी ने कम
दोनों आगे बढ़े
तुम उलझ गए
जीवन की ज़िम्मेदारियाँ
निभाने में
हँसते हुए
और
मैं इंतज़ार में
उस वापिसी की
जो कब होंगी
पता नहीं
होगी भी या ना नहीं
ये भी पता नहीं
जीवन चल रहा हैं
साँसे भी 

Tuesday, October 20, 2015

निःशुल्क

कहता हैं मेरा एक अजीजः
नहीं हैं इस दुनिया मे कुछ
निःशुल्क

प्यार , हंसी , विश्वास की
कीमत शायद उसने है
कभी चुकाई

इसीलिये प्रश्न था उसका
किस दुनिया में आप
रहती हैं ?

मेरे अजीजः
जिस दुनिया में
रहती हूँ मैं
वहाँ प्यार हैं
हँसी हैं
जिसको बांटती हूँ मैं
उनके साथ
जिनसे मैं जुड़ती हूँ
निःशुल्क


Tuesday, August 18, 2015

पुरुष जैसी

वर्जनाएं सब स्त्री के लिये
गर्जनाये सब पुरुष के लिये
गर्जना अगर कोई स्त्री करती हैं
पुरुष जैसी वो कहलाती हैं
भाव और अभिव्यक्ति तक
लिंग आधरित विभाजित हैं
कैसी विडम्बना हैं
जन्म से जो स्वतंत्र हो
मांगती हैं
स्वतंत्र होने का अधिकार
और
ऐसा करते ही
अपना अस्तित्व खो देती हैं
और पुरुष जैसी होगयी
का तमगा पाती हैं




Thursday, May 21, 2015

लफ़्ज हो या एहसास

वो लफ्ज के सहारे
ब्यान करते रहे
हम एहसास उनके
उन लफ्जो को समझते रहे


एहसास कब लफ्ज़ो से
ब्यान होते हैं
ये भी हम समझते रहे

ज़िंदगी ने बस यही
सिखाया हैं हमें
जीना ही जिंदगी हैं

फिर लफ़्ज हो या एहसास
बस समझ का फेर हैं

Thursday, August 07, 2014

दर्द

दर्द बस यही सबसे ज्यादा अपना होता हैं
अपना दर्द ना किसी को दिया जाता हैं
अपना दर्द ना किसी से बांटा जाता हैं 

कोई आप से  इसको माँगता भी नहीं हैं
इसकी चाह भी किसी को नहीं हैं
कोई इसको आप से छीन भी नहीं सकता

और सबसे बढ़िया बात
इसका दिखावा भी आप नहीं करते
सो  खोने का भय भी नहीं होता



Friday, May 09, 2014

बस यूं ही


अकेलेपन का अहसास ,
तकलीफ नहीं देता  
तकलीफ  होती हैं  
जब वो याद नहीं करते
जिन्हे हम भूल नहीं पाते

Thursday, April 17, 2014

इंतज़ार

शिद्दत से जीये और निभाए
तीन अहसास हमने
दोस्ती , प्यार और दुश्मनी

फिर क्यूँ कोताही
होगयी तुम से

जिंदगी के किस मुकाम पर
इसका जवाब मिलेगा
अब तो इंतज़ार हैं
बस  मोड़ का

Tuesday, January 14, 2014

बस ऐसे ही , बस यूं ही

जिंदगी की दूरी तो वो बढ़ा ही रही थी
फिर दिल की दूरियां क्यूँ उन्होने बढ़ा दी

साथ ना रह पाने वजह
क्यूँ बन जाती हैं
साथ ना चल पाने की वजह

जिनको जिंदगी से हम अपनी निकाल देते हैं
वही अपने दिल से हमें निकाल देते हैं


किसी को जिंदगी से निकाल देने से बेहतर हैं
उसको दिल से निकाल देना
जिंदगी फिर भी चलती रहती हैं
पर किसी के दिल मे रहने से
धड़कन थम सी जाती हैं और
याद बनकर रुक रुक कर आती जाती हैं




Wednesday, October 30, 2013

मिलती तो बस एक जिंदगी हैं

मिलती तो बस
एक जिंदगी हैं

अच्छी या बुरी
तो उसको हम
 बनाते हैं

कुछ जी लेते हैं
कुछ काट लेते हैं
और कुछ बस यूँही
बिता देते हैं

मिलती तो बस
एक जिंदगी हैं


 

Monday, October 14, 2013

आदत हैं

आज फिर कुछ पुराने शब्दों को पढ़ा
मन कुछ भटका , दर्द का अहसास भी हुआ
पर
फिर अपने पर  फक्र भी हुआ
नहीं कर सका था एक भी शब्द
तब भी मुझे विचलित
चलने को उस रास्ते पर
जिसकी मंजिल केवल और केवल अँधेरा होती हैं
खुद को  रोकना  नहीं था तभी भी आसान
पर  आदत हैं मुश्किल राह पर चलने की
और सही के साथ रहने की

Monday, August 26, 2013

सच

लड़की हमेशा से जानती थी
कुछ भी कर सकती थी वो
लडके के लिये
इसीलिये तो छोड़ सकी
वो लडके को
उसके सुख के लिये
 

Tuesday, August 06, 2013

निर्मोही-निर्मम

निर्मोही नहीं 
वो निर्मम थे
वरना 
बेरुखी मे भी 
कभी अपने प्यार को 
याद तो करते

Saturday, July 27, 2013

निर्मोही और निर्मम



निर्मोही मोह से उबर जाता हैं
निर्मम मोह  का  तर्पण कर देता हैं

निर्मोही मिल जाए तो भी निभाया जा सकता हैं
निर्मम मिल जाए तो जीवन व्यर्थ ही जाता हैं

Monday, April 29, 2013

जिन्दगी के फलसफे

किसी के वादे पर
उस पार साथ उतरने के
किसी ने अपना किनारा
छोड़ दिया
मझदार में डूब गयी
तैरना आता था
इस लिये उसपार
फिर भी पहुंची
जहां जहाँ ढूंढा
उस पहचाने चेहरे को
नहीं दिखा
फिर समझ आया
मुहं छिपा कर जीना
किसे कहते हैं


Thursday, April 18, 2013

अपना पराया

अपना वो होता हैं
जिसे अपने असमय में
 आवाज देने का मन होता हैं
मगर 
अगर
उस आवाज को
जवाब नहीं मिलता हैं
तो
आप ने अपने को नहीं
पराये को बुलाया था




Sunday, January 13, 2013

सपने और भ्रम

उसकी आँखों के सामने
उसके सब भ्रम
टूट रहे थे
और
वो देख रही थी
खुली आँखों से कुछ सपने

समय के साथ
ना भ्रम बाकी रहे , ना सपने


Wednesday, December 05, 2012

बस एक जवाब कुछ तलख सा अलग सा

जो आप करती हैं
वो सब मै भी करती हूँ
अपने घर मे
उसके साथ साथ
टैक्स भी भर्ती हूँ
अगर आप से कोई प्रश्न करता हैं
डू यु वर्क ??
तो आप को लगता हैं ये प्रश्न
बेमानी हैं
और आत्म मंथन आप को करना पड़ता हैं

काश आप भी काम करती
और फिर समझती
कितना सुख होता हैं
अपनी आय अर्जित करने का
और उसके साथ साथ
सरकार को टैक्स देने का

ताकि सरकारी योजनाये नयी बन सके
उनके लिये जो काम नहीं करते




बस एक जवाब कुछ तलख सा अलग सा  घुघूती जी की कविता पर

Sunday, October 14, 2012

एक हिचकी मे सिमटा सा लगता हैं ,जीवन

कहीं से कहीं नहीं तक
कहीं नहीं से कहीं तक
बस यही जिन्दगी हैं
जो निरंतर हिचकोले लेती
बस चलती ही रहती हैं
कभी सफ़र का अंत ही
नये सफ़र की शुरुवात होता हैं
कभी कोई नया सफ़र
किसी पुराने सफ़र का  अंत होता हैं
 जैसे
कभी एक हिचकी
किसी की याद मे आती हैं
और
कभी एक हिचकी
सबको छोड़ कर जाने का सबब
बनजाती हैं
एक हिचकी मे सिमटा सा लगता हैं
जीवन का ये सफ़र


Friday, September 21, 2012

उम्मीद , ना - उम्मीद

एहसासों  की सड़क पर
रिश्तो के कारवां
उम्मीदों के सहारे
बढ़ते जाते हैं

जिस दिन एहसास शून्य होजाते हैं
सुनसान राहें जिन्दगी की हो जाती हैं
ना उम्मीदी दबे पाँव आकर
उम्मीदों पर हावी हो जाती हैं

Tuesday, August 28, 2012

ईश्वर

ईश्वर
तुम क्या सोचते हो
मै नहीं जानती
बस यही जानती हूँ
तुम कितनी भी मुश्किल में रह कर
अगर मुश्किले मेरे लिये बढाते हो
तो
तुम मुझे और मजबूत बनाना चाहते हो
क्युकी भविष्य बस तुम ही देख पाते हो
मुश्किल क्षणों में मै भी घबराकर
चीत्कार करती हूँ
अनगिनत अपशब्द तुम्हे ही कहती हूँ
पर
फिर समझती हूँ मेरी ख़ुशी का ध्यान
तुम कभी नहीं रखते हो
बस मेरी भलाई की मंशा
तुम्हारी होती हैं

Friday, August 10, 2012

क्योकि मैने निष्ठा से सिर्फ तुमको चाहा

आये थे कृष्ण एक बार वापस विरंदावन
कहा था उन्होने राधा से
" तुम्हे ही चाहता हूँ मै प्रिये
लौटा हूँ
फिर एक बार पाने के लिये प्यार तुम्हारा "
बोली राधा
" मेरा प्यार तो सदा ही है तुम्हारा
पर क्या तुम रुक्मणी को छोड़ कर आये हों "
बोले कृष्ण " रुक्मणी पत्नी है और राधा तुम प्यार हों मेरा "
" अब वापस तो नहीं जाओगे " राधा का प्रश्न था
" नहीं वापस तो जाना है , संसार का कर्म निभाना है"
बोली फिर राधा " जाओ लॉट जाओ
रुक्मणी को छोड़ कर आते तो मेरा प्यार पाते
इस युग मे तो क्या किसी भी युग मे मुझे तक
वापस आओगे मेरा प्यार पाओगे पर
जैसे मै तुम्हारी हूँ
तुमको भी केवल मेरा बन कर रहना
कृष्ण होगा
मुझे प्यार करना और रुक्मणी से विवाह करना
ये पहली गलती थी और
फिर वापस आकर मेरे प्यार की कामना
दूसरी ग़लती है तुम्हारी "
वापस चले गए
कृष्ण
और जाकर अपनी इस यात्रा का विवरण
इतिहास से ही मिटा दिया
क्योकि उन्हें तो भगवान बनना था
मिटा दिया नारी की जागरुकता को
और पुरुष कि कायरता को
उन्होने इतिहास के पन्नो से
क्योकि इतिहास तो हमेशा पुरुष ही लिखते है

फिर एक दिन
फिर मिले वह राधा से
कई युगो बाद
एक मंदिर मे
कहा राधा ने
"देखो आज मै भी वहीं स्थापित हूँ
जहां तुम स्थापित हो
पर मेरा नाम तुम्हारे नाम से पहले
लेते है लोग इस युग के
क्योकी उस युग मे मै सही थी
प्रेम एक वक़्त मे केवल एक से करना
हों सकता है फिर दुसरे युग मे
तुम पराई स्त्री के साथ नहीं
रुक्मणी के साथ पूजे जाओ
तुमने जो कुछ पाया
मुझे भी वही मिला
अलग अलग रास्तो से
एक ही जगह पहुंच गए है हम
पर है हम " राधा कृष्ण "
क्योकि मैने निष्ठा से
सिर्फ तुमको चाहा
और
अपना सम्मान मैने

स्वयम अर्जित किया"

Thursday, August 02, 2012

मानसून

मानसून

मुझे तो मानसून कुछ ऐसा लगता हैं
माँ के बिना सूना

अगर माँ ना हो तो
मुश्किल होता हैं
मिलना शिशु को पहला
दुग्ध आहार
जो बचाता हैं व्याधियों से और
देता हैं जीवन

मानसून
देती हैं वो बूंदे
जो खेतो की प्यास बुझाती हैं
और फसले लाती हैं
फसले जो देती हैं जीवन




Sunday, July 15, 2012

मनाई , बंदिश और नियम -- एक कविता जो पुरानी हैं पर आज भी नयी हैं

मनाई , बंदिश और नियम
जहाँ भी मनाई हों
लड़कियों के जाने की
लड़को के जाने पर
बंदिश लगा दो वहाँ
फिर ना होगा कोई
रेड लाइट एरिया
ना होगी कोई
कॉल गर्ल
ना होगा रेप
ना होगी कोई
नाजायज़ औलाद
होगा एक
साफ सुथरा समाज
जहाँ बराबर होगे
हमारे नियम
हमारे पुत्र , पुत्री
के लिये
  एक कविता जो पुरानी हैं पर आज भी नयी हैं   My Vision Of Gender Equality

Where Ever You Dont Want
The Girls Should Go
Put An Embargo For The Boys
Then There Will Be  No Red Light Area
There Will Be No Call GIrl
There Will Be No Rape
And
No So Called Illicit Child
Will Be Born

There Will Be
A Neat And Clean Society
Where
The Rules Will Be Same
For Our Sons And Daughers

Copy Right Rachna

Friday, July 06, 2012

मिडल क्लास का एक आदमी

आज फिर दिखा
मिडल क्लास का एक आदमी
एक फ्लाई ओवर के ऊपर
एक रिक्शे पर सवार
एक पत्नी
तीन छोटे बच्चे
और दो भारी भरकम अटैची
को पीछे से धक्का देते हुए
दो रिक्शे ना अफोर्ड कर पाना
चढाई पर अकेला रिक्शे वाला कैसे खीचेगा
यही हैं मिडल क्लास मानसिकता

पत्नी भी उत्तर सकती थी
आफ्टर ऑल अर्धांगिनी थी
सुख दुःख की साथी थी 
नहीं उतरी  क्युकी वहाँ
वो पहले नारी थी
सुकुमारी थी

ख़ैर
ईश्वर से प्रार्थना हैं
मिडल क्लास के इस आदमी को
बनाए रखना
अपने परिवार के प्रति
मानवता के प्रति उसका प्रेम जगाये रखना  

Sunday, June 24, 2012

प्यार

दफ़न की हुई
यादो की कब्र पर
जिन्दगी का दिया
बुझने की लालसा मे
टिमटिमा रहा हैं

जब दिया बुझ जायेगा
कब्र को मज़ार कहा जाएगा
और
मन्नत मांगने के लिये
कोई ना कोई
अपने प्यार को पाने के लिये
अपनी यादो के साथ
वहां आकर
फिर एक दिया जलायेगा

प्यार फिर कहीं का कहीं
किसी ना किसी याद मे

किसी यादो की कब्र को
मज़ार बना ही जाएगा




Saturday, June 16, 2012

नागवार

याद आये तो तो नागवार होता हैं
याद ना आये तो भी नागवार होता हैं
जिन्दगी बीत जाए तो भी नागवार होता हैं
जिन्दगी कट जाए तो भी नागवार होता हैं
किसी का साथ नागवार होता हैं
किसी से मिलना नागवार होता
और कभी कभी तो जैसे जीना नागवार होता हैं

Wednesday, June 06, 2012

पदचिन्ह

जब भी मै यहाँ आती हूँ
किसी के पद चिन्ह पाती हूँ
और
आश्चर्य मे पड़ जाती हूँ
उनको तो यहाँ होना ही ना था
और कभी किसी के पद चिन्ह यहाँ
बड़ा सुख दे जाते हैं की
उनका आना बदस्तूर जारी हैं
लेकिन
कुछ कमजोर असुरक्षित  पदचिन्ह
मुझे निशब्द कर देते हैं


Wednesday, May 30, 2012

गर्मियों की छुटियाँ


बहने , अपने बच्चो के साथ
अपने मायके आ गयी
अब लगता हैं
गर्मियों की छुटियाँ आगयी
बच्चो के आने से
उनके लड़ाई झगड़े से
उनकी पसंद ना पसंद से
अपने और अपनी बहनों के
बचपन को जीना
कितना सुख देता हैं
ये गर्मियों में ही पता चलता हैं

Saturday, May 05, 2012

जिन्दगी अब किस के मोह मे बाकी हैं ???

यादो का क्या हैं 
मन मर्ज़ी की मालिक हैं 
कभी आती हैं तो शिद्दत से आती हैं 
बे वजह आती हैं 
और कभी 
भूल कर भी नहीं आती हैं 
शायद इसी लिये कहते हैं 
यादो के सहारे 
जिंदगी नहीं काटी जाती हैं 
लेकिन क्या जिंदगी काटने के लिये होती हैं 
जो ये कहते हैं 
यादो के साथ जिंदगी नहीं काटी जाती हैं 
वो कभी ये क्यूँ नहीं बताते की 
जिन्दगी जी कैसे जाती हैं 
जाते जाते  यादे भी जा रही हैं 
जिन्दगी अब किस के मोह मे 
बाकी हैं ???

Sunday, April 29, 2012

बस यूही नहीं लिखा हैं मन था इस लिये ही कहा हैं

सभ्यता 
अगर कपड़े पहनने से 
आजाती 
सो समाज में  
सब सुरक्षित होते 
कपड़े 
सुरक्षा कवच मात्र हैं 
शरीर के 
असंख्य हैं जो 
कपड़े पहने रह कर भी 
असभ्य हैं 
क्या दर्पण उनको दिखाना 
और उनको ये अहसास कराना की 
उनकी असभ्यता से 
नगनता बढ़ रही हैं 
गलत हैं


      

Friday, April 20, 2012

प्यार


प्यार अगर
दो से होजाये 
तो 
पहले को छोड़ना 
और 
दूसरे से निभाना  
ही 
सही होता हैं 

क्युकी 
अगर 
प्यार पहले से होता 
तो 
दूसरे का वजूद ही ना होता 

Thursday, April 05, 2012

माँ बेटी यानी एक घर

चल दिये हैं अब हम
चारदीवारो को
एक बार फिर
घर बनाने
हम
यानि
एक बेटी और एक माँ
वैसे एक बेटी और एक माँ
होती हैं जहां
घर खुद बा खुद बन ही जाता हैं



  

Tuesday, March 27, 2012

नियति

नियति
जब गलत समय पर
दो सही लोगो को
मिलवाती हैं
तो
हम कहते हैं 
दर्द और तकलीफ
नियति से मिला हैं

क्या सच मे
कोई समय गलत होता 
और
कोई व्यक्ति सही होता हैं

कहीं ऐसा तो नहीं हैं
की दो गलत व्यक्ति
सही समय पर मिले
और अलग हुए
क्युकी वो गलत थे

और हमेशा की तरह दोष
दिया गया
नियति को 

Thursday, March 22, 2012

असफल औरत यानी एक घुटन भरी डायरी

एक घुटन भरी डायरी
यानि
एक असफल औरत
एक सफल पुत्री
एक सफल पत्नी
एक सफल माँ
पर
एक असफल इंसान
मानसिक रूप से टूटी
सामाजिक रूप से सुरक्षित

गलती हमेशा अपनी नहीं
किसी और की खोजती

सब सुविधा से घिरी
फिर भी असंतुष्ट
सदियों से केवल साहित्य रचती
एक घुटन भरी डायरी लिखती
एक असफल औरत जो
इनसान ना बन सकी
राह अपनी ना चल सकी


क्योकी चाहती थी

राह के कंकर कोई चुन देता
सिर पर छाँव कोई कर देता
और

सफल इंसान वो कहलाती
घुटन से आजादी वो पाती

Wednesday, March 21, 2012

एक सवाल एक ही जवाब

ना जाने कितनी बार
बस पूछा जाता हैं
एक ही सवाल
तुम
अकेली कैसे रह लेती हो
अकेली कैसे जी पाती हो

जवाब बस इतना ही देती हूँ
मैने डर से डरना
कभी सीखा ही नहीं

जो भी जीत लेता हैं
डर के डर को
जीना खुद बा खुद
सीख जाता हैं

अकेला नहीं वो लेकिन होता हैं
हाँ एकाकी हो जाता हैं

मनुष्य दुनिया में
एकाकी आता हैं
एकाकी ही जाता हैं
शांति तब पाता हैं
जब दूसरो के जीवन में
नहीं झांकता हैं
बहुत से मनुष्य
एकाकी नहीं होते
अकेले होते हैं
वही संबंधो का
प्रदर्शन कर के
अपने अकलेपन को छिपाते हैं .
हे ईश्वर
जिनके पास सम्बन्ध हैं पर
फिर भी वो अकेले हैं
उनको
मानसिक विक्षिप्ता से बचाना

Wednesday, March 14, 2012

क्यूँ हमेशा

क्यूँ हमेशा
सच को महिमा मंडित करके
सच को दबाने की कोशिश रहती हैं

क्यूँ हमेशा
रिश्तो पर व्यंग करके
रिश्तो की गरिमा को निभाने की कोशिश रहती हैं

क्यूँ हमेशा
स्नेहियों की तारीफ़ करके
भीड़ जुटाने की कोशिश रहती हैं

क्यूँ हमेशा
अप्रवासी हो करके
भारतीये बने रहने की कोशिश होती हैं

क्यूँ हमेशा
अप्रवासी भारतीये बनते ही
भारतीये पर व्यंग और छिट्टाकशी की कोशिश होती हैं

Wednesday, March 07, 2012

होली की सभी को बधाई

त्यौहार पैसे से नहीं
प्यार से मनता हैं
और अभी ऐसी महंगाई
नहीं हैं आयी
अथाह प्यार हैं आपके
और मेरे पास भी
प्यार के अबीर और गुलाल से
रंगिये अपनी और मेरी आत्मा को

Tuesday, March 06, 2012

आत्मिक सफ़र

सालो से मेरे अन्दर
एक ख्वाइश थी
अपनी आत्मा को खोजने और पाने की

फिर मुझे वो मिली
तुम्हारे अन्दर

जिस दिन मैने अपनी आत्मा को पाया
उस दिन मैने शांति भी पाई

रास्ता बहुत लम्बा था
पर जो मिला वो अमूल्य था

अब मै अपनी आत्मा के साथ हूँ
और ये भी समझ गयी हूँ
की जिस दिन मुझे मेरी आत्मा मिल गयी

उसी दिन से तुम आत्मा विहीन होगये

मेरी आत्मा के साथी
जैसे मेरी आत्मा तुम्हारी अन्दर कैद थी
तुम्हारी मेरी अन्दर हैं

अगर फिर आत्मा के साथ जीना चाहते हो
तो मुझ तक आओ और
अपनी आत्मा ले जाओ

कब तक यूँ बिना आत्मा के भटकोगे
मेरी आत्मा के मित्र { soulmate }

Thursday, February 23, 2012

सुबह और रात

कभी कभी सोचती हूँ
अगर हर सुबह के बाद एक रात ना होती
तो क्या होता ?

क्या जिन्दगी यूहीं चलती

पता नहीं क्यूँ सबको यही कहते सूना हैं
हर रात के बाद एक सुबह जरुर होती हैं

क्या
सुबह की जरुरत रात से ज्यादा होती हैं ?

रात के सन्नाटे की आहटो में
निशब्द भी शब्द सुनायी देते हैं
और सुबह के शोर में
निशब्द शब्दों को मिलते हैं बोल

हर सुबह की एक रात जरुर
होनी चाहिये
ताकि
दूसरो से बात करते करते
अपने को भूल चुके हम
खुद से बात कर सके

Wednesday, February 22, 2012

आवाज टंकार बन चुकी हैं

कल
औरत
एक आवाज थी
दबा दी जाती थी

आज
औरत
एक टंकार हैं

अब लोग दबा रहे हैं
अपने कान
ताकि
टंकार सुनाई ना दे

कल की औरत की आवाज
आज की औरत की
टंकार बन चुकी हैं

kaments yahaan dae

आवाज टंकार बन चुकी हैं


नो
आवाज थी
दबा दी जाती थी

आज
औरत
एक टंकार हैं

अब लोग दबा रहे हैं
अपने कान
ताकि
टंकार सुनाई ना दे

कल की औरत की आवाज
आज की औरत की
टंकार बन चुकी हैं

kaments yahaan dae

Tuesday, February 14, 2012

अभिनव हो तभी है प्यार


सबसे ज़्यादा कहा गया
पर सबसे कम समझा गया
शब्द है प्यार

सबसे ज़्यादा चाहा गया
पर सबसे कम जीया गया
अहसास है प्यार


उससे पाने से ज्यादा
उसको देने मे था प्यार


उसके साथ रहने से ज़्यादा
उससे दूर होने मे है प्यार


जिये हुए को आत्मसात
करने मे है प्यार

महसूस करने को
तुम से
अभिव्यक्त ना करने मे है प्यार

पुरुष की ज़रूरत हो
स्त्री का सम्पर्ण हों
तो उस अनाम रिश्ते का
नाम है प्यार

पुरुष को जो पुरुष बनाए
स्त्री को जो स्त्री बनाये
वह संपूर्ण कर्म है प्यार

सच कहने की जो ताकत दे
सच स्वीकारने की जो शक्ति दे
वह भावना है प्यार

अभिनव हो तभी है प्यार
बाकी सब है व्यवहार


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Saturday, February 11, 2012

अभिन्न रिश्ता

अभिन्न रिश्ता

हर रिश्ता अभिन्न होता हैं
अभिन्न रिश्तो में
कभी ही क़ोई प्रगाढ़
रिश्ता बनता हैं

अभिन्न रिश्तो मे होती हैं
अभिन्न मित्रता
जो हर विभेद से ऊपर होती हैं

और कभी कभी अभिन्नता
मे छुपी होती हैं भिन्नता
पर फिर भी रिश्ता रहता हैं अभिन्न

Wednesday, February 01, 2012

याद


गाहे बगाहे
बिना बुलाये
जो आये
वो
याद
कहलाये

Monday, January 30, 2012

खोज लो मेरे शब्दों मे अपने को

जीवन के इस नाट्य मंच
असंख्य किरदार में बटा हैं जीवन
कहता हैं क़ोई तुम ये हो
कहता हैं क़ोई तुम वो हो
यहाँ तक भी कहने वाले कहते हैं
जैसी दिखती हो वैसी तो नहीं हो
क्यूँ समझने की चाहत रखता हैं
हर क़ोई दूसरो को
शब्दों में दूसरो के
अपने को गर खोज लो
दूसरो को जीवन कुछ
आसाँ हो जाये

अभी कहीं से क़ोई आयेगा
और एक टिपण्णी फिर दे जाएगा
यहाँ सब अपने ही तो हैं
अपनों से कैसा दुराव छिपाव
ख़ैर
अगर खोज सको मेरे शब्दों मे अपने को
तो शब्द मेरे सार्थक हैं
लिखनी आती भी नहीं
बस शब्द हैं और उन शब्दों मे
मै नहीं आप हैं

Tuesday, January 17, 2012

नमी

तुम्हारे बिना मेरी जिन्दगी
ना पूरी हैं ना अधूरी हैं
क्या कहीं क़ोई कमी हैं
नहीं , आखों में बस
एक नमी हैं

Friday, January 13, 2012

तलाश मंजिल की

मजबूरियां
छीन लेती हैं
रास्ता चुनने का हक़
रास्ता सही हैं
या गलत हैं
कैसे होगा फैसला
अगर रास्ता बस हो
एक ही
चलना ही नियति हैं शायद
चुनना नहीं
मंजिल कैसे फिर पता होगी

Tuesday, December 27, 2011

बस पात्रो के नाम बदलते हैं

कहने को कहते हैं लोग
किस्सा हुआ ख़तम
कहानी हुई ख़तम
पर क्या कभी क़ोई कहानी ख़तम होती हैं
ख़तम होता हैं क्या कभी क़ोई किस्सा
जो जी लेते हैं पात्र बनकर कहानी को
उनके लिये कहानी जिन्दगी होती हैं
जो जी नहीं पाते कहानी को पात्र बनकर
उनके लिये कहानी मौत होती हैं
साल बदल जाते हैं पात्र बदल जाते हैं
जीवन बदल जाते हैं
शरीर मिट जाते हैं
आत्मा शरीर बदल लेती हैं पर
कहानी और किस्से वही रहते
प्यार भी नफरत भी
बस पात्रो के नाम बदलते हैं

Tuesday, November 01, 2011

प्यार

प्यार हो जाने का एहसास
प्यार पाने के अहसास
से ज्यादा सुकून देता हैं

Saturday, October 01, 2011

योद्धा

योद्धा

जब भी दिखा हैं मुझे क़ोई योद्धा
नारी के हक़ की लड़ाई लड़ता
उसके आस पास दिखा हैं
एक मजमा उसको समझाता

क़ोई उसको माँ कहता हैं
क़ोई कहता हैं दीदी
क़ोई कहता हैं स्तुत्य
क़ोई कहता हैं सुंदर

और
फिर इन संबोधनों में
वो योधा कहां खो जाता हैं
पता ही नहीं चलता हैं

और
रह जाती हैं बस एक नारी
कविता , कहानी लिखती
दूसरो का ख्याल रखती
तंज और नारियों को
नारीवादी होने का देती

ना जाने कितने योद्धा
कर्मभूमि में कर्म अपने
बदल लेते हैं

और
मजमे के साथ मजमा बन
जीते हैं

Thursday, September 29, 2011

"जीता हैं दुनिया को मैने शब्दों से "

I Conquer The World With Words by Nizar Qabbani
"जीता हैं दुनिया को मैने शब्दों से " अनुवाद - रचना

I conquer the world with words,
जीता हैं दुनिया को मैने शब्दों से
conquer the mother tongue,
जीता हैं बोलो को
verbs, nouns, syntax.
सर्वनाम , संज्ञा और विषय वर्णन को
I sweep away the beginning of things
बहा दिया हैं शुरुवात की प्रक्रिया को
and with a new language
एक नयी भाषा से
that has the music of water the message of fire
जिस मे हैं संगीत पानी का और सन्देश अग्नि का
I light the coming age
ज्वलंत किया हैं मैने आने वाले समय को
and stop time in your eyes
और रोक दिया हैं समय को तुम्हारी आँखों मे
and wipe away the line
और मिटा दी वो महीन रेखा
that separates
जो अलग कर रही थी
time from this single moment.
समय को इस पल से

Tuesday, September 20, 2011

जब ऐसा हो तो

क्या कभी आप के साथ भी ऐसा हुआ हैं
की
चाँद तो ढला हो पर रात ना बीती हो
और
सूरज तो निकला हो पर सुबह ना हुई हो

Wednesday, September 14, 2011

बस्ती

हिंदी वही जा बसती हैं
जहां बस्ती हैं अपनों की
फिर भी ना जाने क्यूँ लगता
किस देश मे बसती हैं अपनों की
किसी बस्ते में बंद हैं अपने
बसा के बस्ती अपनों की

Thursday, September 08, 2011

स्व से विलोम

मिल भी गया गर तुम्हारा स्व तुमको
क्या कृष्ण और बुद्ध तुम बन पाओगे
और बन भी गये
तो भी क्या पाओगे
ये स्व बहुत भगाता हैं
जब मिलता हैं
पाने वाला विलोम हो जाता हैं

Monday, August 15, 2011

स्वतंत्रता दिवस की बधाई

स्वतंत्रता दिवस की बधाई
स्वतंत्रता जिस पीढ़ी ने पायी
वो स्वतंत्रता दे कर नयी पीढ़ी को
कहीं दूर काल में समायी
अब जो पीढ़ी हैं
वो स्वतंत्र ही आयी
पाने के कष्ट को उसने नहीं हैं जाना
लेकिन स्वंत्रता क्या होती हैं
उसने भी हैं माना
नयी पीढ़ी पर रखे विश्वास
जो पुरानी पीढ़ी से उसको मिला हैं
चाहे स्वतंत्रता हो या संस्कार
वो थाती वो आगे ले जायेगी
और अपनी नयी पीढ़ी को दे जाएगी

Thursday, August 11, 2011

मोड़


जिन्दगी के मोड़
कितने अजीब होते
जिस मोड़ पर
कोई किसी से मिलता हैं
उस मोड़ पर ही
कोई किसी से
बिछड़ता हैं

कहीं जिन्दगी मुड़ जाती हैं
कहीं क़ोई जिन्दगी से मुड़ जाता हैं
और कहीं
किसी को जिन्दगी मोड़ देती हैं

Monday, August 08, 2011

अकेला या एकाकी

मनुष्य दुनिया में
एकाकी आता हैं
एकाकी ही जाता हैं
शांति तब पाता हैं
जब दूसरो के जीवन में
नहीं झांकता हैं
बहुत से मनुष्य
एकाकी नहीं होते
अकेले होते हैं
वही संबंधो का
प्रदर्शन कर के
अपने अकलेपन को छिपाते हैं .
हे ईश्वर
जिनके पास सम्बन्ध हैं पर
फिर भी वो अकेले हैं
उनको
मानसिक विक्षिप्ता से बचाना



Sunday, August 07, 2011

दूरियाँ अपनों की

किसी अपने का दूर चले जाना
दूरियाँ दे जाता हैं
कष्ट तो कभी सुख
साथ लाता हैं
लेकिन
किसी अपने का दूरियाँ बढ़ाना
सिर्फ और सिर्फ
दर्द ही देता हैं

पास होकर भी जब अपने
पास नहीं होते
अपने होने का अहसास भी
जैसे साथ नहीं होता

Saturday, August 06, 2011

आयु बोध

आयु बोध
कौन कब और किसे करा पाया हैं
क्या आयु से बोध हमेशा ही आ जाता हैं
क्या "जी" और 'आदरणीय' कहने से
हर क़ोई हर किसी को
उसकी आयु योग्य आदर दे पाता हैं
विचारों के मंच पर
आयु बोध
महज विचारों से भटकना हुआ


कहा आपने
समझा आपने
सही आप का
गलत भी आपका
जब सब आप का था
तो क्षमा मेरी क्यूँ
वो भी आपकी हैं
अगर आप ने खुद को
क्षमा कर पाया
तो समझिये आयु बोध
हो पाया

Thursday, August 04, 2011

क्या

क्या से पहचान क्या हुई
बात लेने देने पर ख़तम हुई
क्या हर भूल
क्या हर चूक
का सार
बस लेना और देना हैं

Friday, July 29, 2011

बारिश की बूंदे

ये बारिश की बूंदे हैं
या आसमां से
जन्नत का नूर
धरती पर गिर रहा हैं
प्यासी धरती को सीच रहा हैं
और
ना जाने कितने
मनो को भिगो रहा हैं

Wednesday, July 27, 2011

बिंदी, दर्प और अस्तित्व

क्या भूल गए की मेरी ये बिंदी
जिसका दर्प तुमको आज दिख रहा हैं
उसका अस्तित्व तुम से ही बना हैं
जिस दिन ये बिंदी मैने माथे पर लगा ली
उस दिन से अपने अस्तित्व को खो दिया
तुमने तो केवल समुद्र और दो गज जमी ही खोई
मेरा तो सारा अस्तित्व ही ये बिंदी ही लील गयी
और फिर भी इस का दर्प तुमको दिखता रहा

Wednesday, July 06, 2011

जिन्दगी का सच

ना जाने कितने समय से समय रुका हैं
ना जाने कितने रुके हुए पल
रोज छिन्न भिन्न होते हैं
और लोग कहते हैं
हम जिंदा हैं

Friday, July 01, 2011

घर बनाने का अधिकार नारी का नहीं होता

घर बनाने का अधिकार
नारी का नहीं होता
घर तो केवल पुरुष बनाते हैं
नारी को वहाँ वही लाकर बसाते हैं
जो नारी अपना घर खुद बसाती हैं
उसके चरित्र पर ना जाने कितने
लाछन लगाए जाते हैं

बसना हैं अगर किसी नारी को अकेले
तो बसने नहीं हम देगे
अगर बसायेगे तो हम बसायेगे
चूड़ी, बिंदी , सिंदूर और बिछिये से सजायेगे
जिस दिन हम जायेगे
उस दिन नारी से ये सब भी उतरवा ले जायेगे
हमने दिया हमने लिये इसमे बुरा क्या किया


कोई भी सक्षम किसी का सामान क्यूँ लेगा
और ऐसा समान जिस पर अपना अधिकार ही ना हो
जिस दिन चूड़ी , बिंदी , सिंदूर और बिछिये
पति का पर्याय नहीं रहेगे
उस दिन ख़तम हो जाएगा
सुहागिन से विधवा का सफ़र
लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा
क्यूंकि
घर बनाने का अधिकार
नारी का नहीं होता

Wednesday, June 01, 2011

सच झूठ

हर किसी का
कहीं एक छुपा सच होता हैं
जो बस एक झूठ था

जो जीया तो जाता हैं
पर जीवन नहीं दे पाता हैं

ना जाने क्यूँ दूसरे
तलाशते रहते हैं
दूसरो के इस सच को

किसी का जिन्दगी का सच
शायद टिका होता हैं
किसी के जिंदगी के झूठ पर

Monday, May 23, 2011

सजा

किसी को कभी
सजा देनी हो
तो
छीन लो उससे
हर वो हसीन याद
जो तुम से जुड़ी हो
भर दो उसके मन में
अपने लिये नफरत
जलने दो उसको नफरत की आग में
क्युकी नहीं हैं अधिकार किसी को भी
सहजने का उन हंसीन यादो को
जो थाती हैं सिर्फ तुम्हारी

Friday, May 20, 2011

बरसो के सम्बन्ध की बरसी

बरसो के सम्बन्ध की बरसी
जब भी आती हैं
अपने साथ एक और बरस
यादो का दे जाती हैं

Sunday, April 24, 2011

शुभकामना

कभी शुभकामना पा कर खुश होता हैं जो मन /जन
कभी शुभकामना पा कर नाखुश होता हैं वही मन /जन
जो शुभ कामना ख़ुशी ना दे
वो शुभ शायद अब नहीं रही
और अशुभ कुछ
कभी दिया नहीं जाता उसको
जिस से नाता होता हैं मन का

Thursday, April 21, 2011

इश्क इबादत्त हैं

इबादत्त हैं इश्क
कहता हैं ज़माना
फिर करके इश्क
क्यूँ रोता हैं ज़माना
इबादत्त करना
और चाह रखना
कि जो मांगो मिलेगा
गलत ही हैं
मिलेगा वही जो होगा सही
क्यूँ नहीं समझता हैं ज़माना

Thursday, April 14, 2011

प्रेम

उपासना - प्रेम था मीरा का
कृष्ण को आराध्य बना दिया
दाम्पत्य - प्रेम था रुक्मिणी का
कृष्ण को पति बना दिया
उन्मुक्त - प्रेम था राधा का
कृष्ण को कृष्ण ही रहने दिया

Saturday, March 12, 2011

सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर

अरुणा
मर तो तुम उस दिन ही गयी थी
जिस दिन एक दरिन्दे ने
तुम्हारा बलात्कार किया था
और तुम्हारे गले को बाँधा था
एक जंजीर से
जो लोग अपने कुत्ते के गले मे नहीं
उसके पट्टे मे बांधते हैं

उस जंजीर ने रोक दिया
तुम्हारे जीवन को वही
उसी पल मे
कैद कर दिया तुम्हारी साँसों को
जो आज भी चल रही हैं

उस जंजीर ने बाँध दिया तुमको एक बिस्तर से
और आज भी ३७ साल से वो बिस्तर ,
मै
तुम्हारा हम सफ़र बना
देख रहा हूँ तुम्हारी जीजिविषा
और सोच रहा हूँ

क्यूँ जीवन ख़तम हो जाने के बाद भी तुम जिन्दा हो ??

तुम जिन्दा हो क्युकी तुमको
रचना हैं एक इतिहास
सबसे लम्बे समय तक
जीवित लाश बन कर
रहने वाली बलात्कार पीड़िता का
उस पीडिता का जिसको
अपनी पीड़ा का कोई
एहसास भी नहीं होता

हो सकता हैं
कल तुम्हारा नाम गिनीस बुक मे
भी आजाये

क्यूँ चल रही हैं सांसे आज भी तुम्हारी
शायद इस लिये क्युकी
रचना हैं एक इतिहास तुम्हे

जहां अधिकार मिले
लोगो को अपनी पीड़ा से मुक्ति पाने का
उस पीड़ा से जो वो महसूस भी नहीं करते



आज लोग कहते हैं
बेचारी बदकिस्मत लड़की के लिये कुछ करो
भूल जाते हैं वो कि
लड़की से वृद्धा का सफ़र
तुमने अपने बिस्तर के साथ
तय कर लिया हैं
काट लिया कहना कुछ ज्यादा बेहतर होता

कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं



एक बिस्तर कि भी पीड़ा होती हैं
कब ख़तम होगी मेरी पीड़ा
अरुणा का बिस्तर सोच रहा हैं
और कामना कर रहा हैं
फिर किसी बिस्तर को
बनना पडे
किसी बलात्कार पीड़िता
का हमसफ़र



लेकिन
बदकिस्मत एक बलात्कार पीड़िता नहीं होती हैं
बदकिस्मत हैं वो समाज जहां बलात्कार होता हैं

बड़ा बदकिस्मत हैं
ये भारत का समाज
जो बार बार संस्कार कि दुहाई देकर
असंस्कारी ही बना रहता हैं

Friday, March 11, 2011

गलती

सब कुछ था उसके मौन मे
सहमति , असहमति
स्वीकृति , अस्वीकृति
बस वो ही सही नहीं समझी
जब उसके प्यार को उसका
अपनापन समझना था
वो उसका बचपना समझी
जब उसके प्यार को
उसका बचपना समझना था
वो उसका अपनापन समझी

उसके मौन को ना समझने
की गलती को आज भी सुधार रही हैं
उसकी यादो के सहारे जीवन बिता रही हैं

Thursday, February 24, 2011

बेगाने , अपने

बेगानों की बस्ती मे अपनों से मिलना
जब भी होता हैं
हर बेगाना अपना हो जाता हैं
और कभी कभी
अपनों कि बस्ती मे
सिर्फ बेगाने ही दिखते हैं
किसी किसी आँख मे होता हैं
इतना बेगाना पान कि
आंख मिलने से भी डर लगता हैं
और कहीं कहीं आँखों का अपना पन
मन मिलाने को मजबूर कर देता हैं

Sunday, December 26, 2010

पता नहीं क्यूँ

नियति के रास्ते
पुरुषार्थ से बदले
नहीं जा सकते
हां
पुरुषार्थ से नियति
के रास्तो की मुश्किले
आसान होती हैं


बीते साल के साथ बीत जाता हैं
उस साल का सब कुछ
क्या सच मे
शायद नहीं

कभी कभी कुछ ऐसा होता हैं
नियति से
कि
पुरुषार्थ भी नहीं मिटा पाता
उस बीते को
मन से

पता नहीं क्यूँ

Monday, December 20, 2010

याद

गाहे बगाहे
बिना बुलाये
जो आये
वो
याद
कहलाये

Saturday, December 04, 2010

सच झूठ

सच से जब रुबुरु होती हूँ उनके
दया और करुणा उपजती हैं
उनके झूठ पर

Sunday, November 28, 2010

कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं

कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं
हमेशा पैरो तले रौंदते हैं
कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं
जब चाहते हैं बेचते खरीदते हैं
कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं
फसल पर फसल उगाते हैं
कुछ लोग औरत को जमीन समझते हैं
माँ कहते हैं पर कुपुत्र ही रहते हैं

Thursday, November 11, 2010

सच्चा प्यार

लोग कहते हैं उन्हे सच्चा प्यार नहीं मिला
कैसे मिलता
सब प्यार पाना चाहते हैं
करना कोई नहीं चाहता
किसी को जी भरकर प्यार कर के देखो
बस दे कर , दे कर देखो
उसके जाने के बाद
उससे सालो ना मिलने के बाद भी
यही महसूस होगा कि
उसने तुमको सच्चा प्यार किया
अगर प्यार तुम्हारा सच्चा होगा
तो सच्चे प्यार कि तलाश
तुमको कभी ना होगी

Tuesday, November 02, 2010

दिवाली



राम लौटे थे अयोध्या दिवाली पर
या दिवाली मनाई जाती हैं
क्युकी राम अयोध्या लौटे

पर तब से

दिवाली आती हैं हर साल
दीप भी जलते हैं सुबह तक हर साल

वो
दिवाली कब आयेगी
जब सारी बुराई जल जायेगी
और
अच्छाई का वनवास ख़तम होगा

राम का वनवास ख़तम हुए तो युग बीते
पर अच्छाई का वनवास अनंत काल से
अनंत काल तक चल रहा हैं

आईये दिवाली पर
अच्छाई को घर वापस लाये
और
सचाई के दीप जलाये

Tuesday, October 05, 2010

वह आज की नारी है

वह आज की नारी है
हर बात मे पुरुष से उसकी बराबरी है
शिक्षित है कमाती है
खाना बनाने जैसे
निकृष्ट कामो मे
वक़्त नहीं गवाँती है
घर कैसे चलाए
बच्चे कब पैदा हो
पति को वही बताती है
क्योकि उसे अपनी माँ जैसा नहीं बनना था
पति को सिर पर नहीं बिठाना था
उसे तो बहुत आगे जाना था
अपने अस्तित्व को बचाना था
फिर क्यों
आज भी वह आंख
बंद कर लती है
जब कि उसे पता है
की उसका पति कहीँ और भी जाता है
किसी और को चाहता है
समय कहीं और बिताता है
क्यों आज भी वह
सामाजिक सुरक्षा के लिये
ग़लत को स्वीकारती है
सामाजिक प्रतिष्ठा के लिये
अपनी प्रतिष्ठा को भूल जाती है
और पति को सामाजिक सुरक्षा कव्च
कि तरह ओढ़ती बिछाती है
पति कि गलती को माफ़ नहीं
करती है
पर पति की गलती का सेहरा
आज भी
दूसरी औरत के सिर पर
रखती है
माँ जैसी भी नहीं बनी
और रुढ़िवादी संस्कारों से
आगे भी नहीं बढी.
फिर भी वह चीख चीखकर कहती है
मै आज की नारी हूँ
पुरुष की समान अधिकारी हूँ

Friday, October 01, 2010

धर्म की परिभाषा

कभी कभी मन कहता हैं
कि
आओ सब मिल कर
एक साथ
विसर्जित कर दे
हर धर्म ग्रन्थ को
हर मूर्ति को
हर गीता , बाइबल
कुरान और गुरुग्रथ साहिब को
एक ऐसे विशाल सागर मे
जहाँ से फिर कोई
मानवता इनको बाहर
ना ला सके
किस धर्म मे लिखा हैं
की धमाके करो
मरो और मारो
और अगर लिखा हैं
तो चलो करो विसर्जित
अपने उस धर्म को
अपनी आस्था को
अपने मन मे रखो और
जीओ और जीने दो
मानवता अब शर्मसार हो रही हैं
तुम्हारी धर्म की परिभाषा से


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Thursday, September 30, 2010

मौन

मौन
जब अपने संवाद
सिर्फ़ हमे ही सुनाई देते हैं

मौन
जब कहीं कुछ दरक जाता हैं
और आवाज सिर्फ़ हम तक आती हैं

मौन
जब स्वीकृति
शब्दों से नहीं
एहसासों से दी जाती हैं

मौन
जब अश्रु आँख से नहीं
दिल से बहते हैं

मौन
जब शब्द नहीं
एहसास बोलते हैं

और
अपनों के ही नहीं
गैरो के दिल तक भी पहुचते हैं

Sunday, August 15, 2010

बस यू ही

भावों की अभिव्यक्ति कविता कहलाती हैं
अभिव्यक्ति मे भावं हो कविता खुद बा खुद बन जाती हैं

Thursday, August 12, 2010

तिरंगा






ए मेरे तिरंगे
जब तू लहराता हैं
ओठो पे मुस्कान लाता है
जब तू झुक जाता है
आंखे नम कर जाता है
ना जाने कितनी
भाषाओ , धर्मो , जातियो को
तू देता है एक छाँव
और देता है
एक शान बहुतो को
बन के कफ़न उनका
एहसास ही तेरा
काफी होता है
वंदे मातरम्
महसूस करने के लिये

Tuesday, August 10, 2010

ज़माने का सच

कहता हैं ज़माना
किसी कि बातो मे न आना

बिना किसी कि बातो मे आये
सच जमाना का
कौन समझ पाया हैं

Saturday, August 07, 2010

नाता कई जन्मो का

इस बार इस दुनिया से
मुझ से पहले तुम जाओगे
नहीं ये बद्दुआ नहीं हैं मेरी
ये मेरी दुआ हैं
अगले जन्म मे मुझे से
पहले तुम आओगे
तभी तो अपनी इच्छाओ की
अपने प्यार की
अपनी अतृप्त कामनाओं की
पूर्ति तुम कर पाओगे
और मुझे सम्पूर्ण अहसास के साथ पाओगे

तुम से पीछे
अगले जन्म मे मै आना चाहती हूँ
क्युकी अगले जन्म मे मै तुम्हे और
तुम्हारे प्यार को पाना चाहती हूँ

वो नाता जो इस जन्म मे बन सका
पर निभ ना सका
उसको अगले जन्म मै निभाना चाहती हूँ

दुआ हैं मेरी अगले जन्म मे तुम मुझसे पहले आना
इस लिये इस जन्म मे मुझ से पहले इस दुनिया से जाना

Sunday, August 01, 2010

बारिश की बूंदे

ये बारिश की बूंदे हैं
या आसमां से
जन्नत का नूर
धरती पर गिर रहा हैं
प्यासी धरती को सीच रहा हैं
और
ना जाने कितने
मनो को भिगो रहा हैं

Wednesday, July 28, 2010

भारतीये नारी पथ भटक गयी हैं

भारतीये नारी पथ भटक गयी हैं
देवी हम उसको मानते थे
इंसान वो बनगई हैं

पहले हमारी बेटी बनकर वो
नाम पाती थी
पहले हमारी पत्नी बनकर वो
नाम पाती थी
पहले हमारी माँ बन कर वो
नाम पाती थी

अब वो अपना नाम खुद बनाती हैं
हमारे नाम के बिना भी
जीना चाहती हैं
अब इसको भटकाव ना कहे तो
क्या कहे ??

वो समानता की बात करती हैं
वो बदलाव की बात करती हैं
वो निज अस्तित्व की बात करती हैं
ये सब भटकाव नहीं तो और क्या हैं

भारतीये नारी पथ भटक गयी हैं
देवी हम उसको मानते थे
इंसान वो बनगई हैं

Friday, July 16, 2010

भ्रम और विश्वास

मन के भ्रम
जब कभी कभी
मन को भ्रमित करते हैं
मन के विश्वास
तब ही जीवन को
गति देते

Saturday, June 12, 2010

शून्यता

शून्यता हैं ये मन की
या कोई अल्प विराम हैं
जो रुका रुका सा सब लगता हैं
खाली पन भी

Saturday, June 05, 2010

निर्भीक जीना शायद इसे ही कहते हैं

जब उम्मीद थी
की कुछ मिल सकता हैं
तो डर था
जो ना मिला उसको खोने का

अब कोई डर नहीं हैं
जो नहीं मिला
वो मिलेगा ही नहीं
तो खोयेगा क्या

कभी कभी
खोने और पाने के फेर मे
जिन्दगी थम सी जाती हैं
रुक सी जाती हैं
और बहते हैं सिर्फ आंसूं

अब आंसूं बंद होगये हैं
जिदंगी चल रही हैं
कोई उम्मीद नहीं हैं
सो कोई डर ही नहीं हैं

निर्भीक जीना शायद इसे ही कहते हैं

Monday, May 03, 2010

तो क्या नया हुआ ?

ना होता कोई रंज
ना होता कोई गिला
जो मुझको छोड़ा होता
तुमने अपने आप
किसी के कहने से
किसी को छोड़ देना
दे जाता हैं
रंज और गिला
मेरे साथ हुआ
तो क्या नया हुआ ?
पर तुमने किया
यही नया हुआ

Sunday, April 25, 2010

जन्मदिन

बहुत मुमकिन हैं
अपने जन्म दिन पर
उसे मेरी याद ही ना आये
मेरे मन से
उसके जन्मदिन पर
दुआ ना निकले
ये मुमकिन नहीं

Monday, March 01, 2010

नीम और गुलमोहर

नीम नीम ही था हर जन्म मे
कडवा मगर सच
हर बीमारी से लड़ता
सूखता फिकता
नीम हो या निबोली
सच कि भाषा और बोली
कडवी ही होती हैं
गुलमोहर का क्या
नीम हो कर तो देखो

Monday, February 22, 2010

सब को चाहिये


सुंदर

सुशील

कन्या


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कमाऊ

आज्ञाकारी

पूत


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Friday, February 12, 2010

जिन्दगी

जीवन मे ना जाने कितने आते हैं
हर आने वाले के साथ
जिन्दगी तो जी नहीं जाती
जीवन से ना जाने कितने जाते हैं
हर जाने वाले के साथ
जीवन ख़तम भी नहीं होता
जिन्दगी खुद चलती हैं
जिदंगी ही हमे चलाती हैं
जीना चाहो तो जिंदगी
ना जाने कितने पल
जीने के लिये दे जाती हैं

Thursday, February 04, 2010

हम

आंसुओ के समंदर मे
जज्बातों कि कश्ती
डूबती उतराती रही
जिन्दगी के भंवर मे
उम्मीद कि पतवार से
हम खेते रहे कश्ती को
यादो के सहारे

Wednesday, January 13, 2010

माँ पिता का आज

नहीं होता हैं माँ पिता के पास कोई कल
उनके पास बस एक आज होता हैं
उस आज मे अगर तुम उनके साथ हो
तो उनका आज सुकून से भरा होता हैं
पर
पैसा कमाने कि होड़ मे
अपने साथ उनका कल भी सुधारने कि होड़ मे
ना जाने कितनी संताने
अपने माता पिता से उनका आज भी
छीन लेती हैं

Monday, November 09, 2009

ऐसा अब सब कहते हैं

लोगो ने कहा

जिंदगी दुबारा शुरू करो

आगे बढो

किसी के जाने से

रूकती नहीं हैं जिंदगी

मैने माना और आगे बढ़ी

जिंदगी को चलाया

आगे बढाया

बस भविष्य मे क्या हैं

ये जानने की तमन्ना

अब मुझे नहीं होती

क्या करना हैं

उस भविष्य का

जिसमे तुम नहीं

वर्तमान मे जिन्दगी

मेरी दौड़ रही हैं

भाग रही हैं

मै आगे जा रही हूँ

ऐसा अब सब कहते हैं

Wednesday, November 04, 2009

वन्दे मातरम -- मातृ भूमि कुमाता कैसे हो जाये ??

ना जाने क्यूँ लोग बार बार

उनसे कहते हैं वन्दे मातरम गाओ

वन्दे मातरम

और

जन गण मन

तो वही गाते हैं

जिनके मन मे देश प्रेम होता हैं

मातृ भूमि को जो चाहेगे

वो ईश्वर से भी मातृ भूमि के लिये लड़ जायेगे

दो बीघा जमीन बस दो बीघा जमीन नहीं होती हैं

अन्न देती हैं , जीवन देती हैं

उस माँ कि तरह होती हैं

जो नौ महीने कोख मे रखती हैं

खून और दूध से सीचती हैं

पर माँ को माँ कब ये मानते हैं

कोख का मतलब ही कहां जानते हैं

मातृ भूमि भी माँ ही होती हैं

कुमाता नहीं हो सकती हैं

इसीलिये तो कर रही हैं इनको

अपनी छाती पर बर्दाश्त

ये जमीन हिन्दुस्तान कि

Thursday, October 22, 2009

पंछी

ना जाने क्यूँ
यादो के झरोखों मे
वही पंछी आ के
बैठते हैं
जिनको दाना पानी
अब हम नहीं चुगा
सकते हैं

Friday, October 16, 2009

दिवाली की शुभ कामनाये

वो अहसास ही क्या
जो दिवाली पर
हर भूला , खोया , बिछडा रिश्ता
याद ना दिलाये

ईश्वर
मेरे हर भूले , खोये और बिछडे
रिश्ते के घर
इस बार भी दिवाली धूम धाम से आये

Friday, October 09, 2009

मोड़

जिन्दगी के मोड़
कितने अजीब होते
जिस मोड़ पर
कोई किसी से मिलता हैं
उस मोड़ पर ही
कोई किसी से
बिछड़ता हैं

Tuesday, October 06, 2009

स्वच्छ हिन्दुस्तान की नेम प्लेट

स्वच्छता का दम भरते हो

ज़रा बताओ फिर क्यों

एक पिता की दो संतान

अगर दो माँ से हैं

तो आपस मे कैसे

और क्यों विवाह

करती हैं

मौन ना रहो

कहो की हम यहाँ

इस हिन्दुस्तान मे

इसीलिये रहते हैं

क्युकी हम यहाँ

सुरक्षित हैं

संरक्षित हैं

कानून यहाँ के

एक होते हुए भी

हमारी तरफ ही

झुके हुए हैं

कहीं और जायगे

तो कैसे इतना

प्रचार प्रसार कर पायेगे

बस हिन्दुस्तान मे ही ये होता हैं

सलीम को यहाँ सलीम भाई

नारज़गी मे भी कोई सुरेश कहता हैं

तुम भाई हो हमारे तो भाई बन कर रहो

हम रामायण पढे

तुम कुरान पढो

ताकि हम तुम कहीं ऊपर जाए

तो राम और अल्लाह से

नज़र तो मिला पाये

ऐसा ना हो की

पैगम्बर की बात फैलाते फैलाते

तुम उनकी शिक्षा ही भूल जाओ

हम को हमारी संस्कृति ने यही समझया हैं

जो घर आता हैं

चार दिन रहे तो मेहमान होता हैं

और रुक ही जाए

तो घर का ही कहलाता हैं

घर के हो तो घर के बन कर रहो

हम तुम से रामायण नहीं पढ़वाते हैं

तुम हम से कुरान मत पढ़वाओ

धार्मिक ग्रन्थ हैं दोनों

पर अगर किताब समझ कर पढ़ सके

कुछ तुम सीख सको

कुछ हम सीख सके

तो घर अपने आप साफ़ रहेगा

और स्वच्छ हिन्दुस्तान नेम प्लेट की

उस घर को कोई जरुरत नहीं होगी ।

Monday, October 05, 2009

स्वच्छ हिन्दुस्तान की सच्ची आवाज

वो कहते हैं
मुस्लिम धर्म अपनाओ
हिन्दुस्तान स्वच्छ हो जाएगा
और सब
सब ठीक हो जाएगा

उफ़
हिन्दुस्तान मे
हिंदू धर्म मे
गलत ही क्या हैं
जो ठीक हो जाएगा
मुस्लिम धर्मं का प्रचार
करने से नहीं रोकता हैं
हिन्दुस्तान का कानून तुम्हे
ज़रा बताओ
अगर हम हिंदू धर्म का प्रचार
करना चाहे तो क्या होगा
एक मुस्लिम देश मे
क्या हमको भी करने दिया जायेगा
या
जेल भिजवाओगे
सारे आम कोडे लगवाओगे
हाथ कटवोगे
हमारे धर्म ग्रन्थ जलवाओगे
और कुरान हमसे पढ़वाओगे

क्यूँ नहीं इस स्वच्छता को विश्व्यापी बनाते हो
जो हमें सीखते हो ख़ुद क्यूँ नहीं अपनाते हो
हमारे देवी देवता की तस्वीरो को
जूते चप्पल पर छाप कर
सोचते हो अपमान कर रहे हो
हिंदू धर्म का
उस धर्म का जहां मानते हैं
कि संस्कार नसों से आते हैं
और इसी लिये पैर
हिंदू धर्म मे
बडो के छुये जाते हैं
जब जब जो भी
उस चप्पल को पहनेगा ,
हमारी संस्कृति और
सभ्यता से ख़ुद ही जुडेगा
और देवता हमारे
उसकी नसों मे
संचार करेगे हिंदू धर्मं का

हिंदू धर्म को
प्रचार और प्रसार
की जरुरत ही नहीं हैं
तुम करते रहो प्रचार प्रसार
मुस्लिम धर्म का



हिन्दुस्तान की स्वच्छता
का जिम्मा उठा रहे हो
तो कभी
अपने अन्दर भी झाँककर देखते
स्वच्छता की जिम्मेदारी
कौन उठाता हैं और
वो क्या कहलाता हैं
बस आज
ईमानदारी से
इसका जवाब दे ही दो
इस संकीण हिंदू को


मुझे नाज हैं कि मै हिंदू हूँ , फक्र हैं मुझे अपने धर्म पर और उसकी सहिष्णुता पर लेकिन हिंदू कमजोर नहीं हैं ये ही हैं स्वच्छ हिन्दुस्तान की सच्ची आवाज ।

Thursday, October 01, 2009

किश्ते

कर्ज थी दुशमनी उनकी
उत्तार दी एक मुश्त
उनको सजा देकर
कर्ज हैं प्यार उनका
उत्तार रहे हैं
किश्त दर किश्त
दिन बा दिन
उनको याद कर कर

Sunday, September 27, 2009

मौन

मौन
जब अपने संवाद
सिर्फ़ हमे ही सुनाई देते हैं

मौन
जब कहीं कुछ दरक जाता हैं
और आवाज सिर्फ़ हम तक आती हैं

मौन
जब स्वीकृति
शब्दों से नहीं
एहसासों से दी जाती हैं

मौन
जब अश्रु आँख से नहीं
दिल से बहते हैं

मौन
जब शब्द नहीं
एहसास बोलते हैं

और
अपनों के ही नहीं
गैरो के दिल तक भी पहुचते हैं

Saturday, September 26, 2009

खवाहिशे

होती हैं कुछ खवाहिशे ऐसी
जो हम को हम नहीं रहने देती

Wednesday, September 23, 2009

बस यू ही

असंभव को सम्भव
करने की चाहत मे
यादो को भुलाने की कोशिश
बदस्तूर ज़ारी हैं

Sunday, September 20, 2009

चलो मौलिक हो जाए

गालिब की तर्ज पर
ग़ज़ल तुकाए
तुलसी की चौपाई
रहीम की दोहे
तोडे मरोडे
और
ख़ुद कवि कहलाये
सितारों को चाहे
अपना प्यारा बताये
और सतही
जमीनी बातो को

भूल जाये


चलो मौलिक हो जाए
और
दूसरो की मौज उडाये

हिन्दी मे नहीं कोई शैक्षिक योग्यता
फिर भी हिन्दी को जांचे

और
तू अच्छा लिखे ,

वो ख़राब लिखे
बार बार समझाये


चलो मौलिक हो जाए
और
एक से दूसरे को भिडाये

अपने पर पड़ जाए
तो
कविता और छंद मे
रोये और गाये

चलो मौलिक हो जाए
और
दूसरो की मौज उडाये


Friday, September 18, 2009

क्यूँ फिर

जरुरत अपनी

मजबूरी अपनी

दर्द अपना

तकलीफ अपनी

फिर क्यूँ

दोष होता हैं

ईश्वर का

Thursday, September 17, 2009

ना जाने कब

न जाने किस आहट पर
कौन आ जाए
जिन्दगी की रफ़्तार
ना जाने किस मुकाम
पर जा कर थम जाए
ना जाने कब
किसी के आने से
साँसों की रफ़्तार बढ़ जाए
और
ना जाने कब
साँसों की रफ़्तार
रुकने से कोई चला जाए

Monday, September 14, 2009

बस ऐसे ही

हिन्दी है भारत माँ के माथे की बिंदी
पर मांग अभी भी अग्रेजी की हैं
रंग आज भी सबको गोरा ही चाहिये
गोरा रंग होगा तो गोरो की मानसिकता होगी
फिर हिन्दी बोलो या इंग्लिश कोई फरक नहीं हैं
क्युकी दासता हैं अब भी गोरो की
काला और गेहुयाँ आज भी
दोयम हैं
सुन्दरता का पैमान आज भी "गोरा" हैं

Friday, September 04, 2009

तुम और मै

माना कि तुम आज

बहुत ऊँचे पहुंच गये हो

बहुत बडे बन गए हो

नहीं

उस ऊँचाई पर मै

कभी नहीं होना चाहती थी

जहाँ ,

इंसान आदमी बन कर रह जाता हैं

तुम्हे तुम्हारी प्रसिद्धता मुबारक

मै अपनी इंसानियत मे

खुश हूँ

Thursday, August 27, 2009

ये देश हैं वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानो का

ये देश हैं वीर जवानो का
अलबेलों का मस्तानो का
चढ़ता हैं नकली खून यहाँ
ये देश हैं वीर जवानो का


अलबेलों का मस्तानो का
करते हैं काम बच्चे यहाँ



ये देश हैं वर जवानो का
अलबेलों का मस्तानो का
गिरते हैं फ्लाईओवर यहाँ



ये देश हैं वीर जवानों का
अलबेलों का मस्तानो का
आती नहीं हैं बिजली यहाँ



ये देश हैं वीर जवानों का
अलबेलों का मस्तानो का
फिर भी खुश !!! हैं सब यहाँ

Saturday, August 15, 2009

बड़ी अजनबी लगती हैं ये दुनिया

जन्माष्टमी पर
मंदिरों के अन्दर लम्बी लाइने
बाल गोपाल को झुला झुलाने के लिए
मन्दिर के बाहर लम्बी लाइने
मेले कुचले कपड़ो मे
प्रसाद मांगते बाल गोपाल
जन्माष्टमी पर
मन्दिर के अन्दर
कृष्ण के साथ परस्त्री को पूजती सुहागिने
मन्दिर के बाहर हाथ मे हाथ डाल कर घुमते
नौजवान अविवाहित जोडे पर टंच कसती सुहागिने
१५ अगस्त पर
आज़ादी के जश्न को मानते परिवार
नौकरानी के देर से आने पर आहत

बड़ी अजनबी लगती हैं ये दुनिया

Thursday, August 06, 2009

पर्दे से निजता तक

कहते हैं लोग
निजता क्या होती हैं
सब पर्दे हटाओ
अन्दर क्या हैं
वो बाहर भी दिखाओ

लेकिन जब एक औरत
सब कपडे उत्तार कर
नाचती हैं
तो उसको आइटम गर्ल
भी यही कहते हैं

कपड़ो की कितनी महिमा हैं
बार बार बखानते हैं
और अपने समय मे दूसरो के
कपडे
पर्दों की तरह
पर्त दर पर्त ये ही खोलते हैं

Friday, July 24, 2009

चुटकियाँ

चुटकियाँ जो काटते हैं
शालीनता का मुलम्मा ओढ़ कर
वो भूल जाते हैं
की पाँच उँगलियों की छाप
हर मुलम्मे को उतार देती हैं
और रह जाता हैं नंगा शरीर
और उससे भी ज्यादा नंगा मन
कपडे बस तन ढकते हैं
कपड़ो मे मन ढकने की ताकत नहीं होती
सभ्यता अगर कपड़ो से आती
तो हर सफेदपोश सभ्य ही होता

Tuesday, July 21, 2009

भईया हम तो ब्लॉगर भले

साहित्य रचा नहीं जाता
साहित्य रच जाता हैं
रचियता ख़ुद अपनी रचना को
साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं


कालजयी होगा तो रह जायेगा
साहित्य तब ख़ुद बन जायेगा
वरना गूगल के साथ ही
विलोम हो जाएगा

सो भईया हम तो ब्लॉगर भले
मुद्दे पे लिखे , विवादों मे घिरे
मन बीती कहे जग बीती सहे
पर अपने लिखे को कभी
साहित्य ना कहे

Saturday, July 18, 2009

श्रवण को जन्म दिन की आशीष

कहते है लोग की बेटा पैदा करो

तो ही माँ बनोगे

पर नहीं हैं ऐसा ।

दो बेटे पाये हैं मैने इस ब्लॉग जगत मे

एक हैं कमलेश मदान और दूसरे है श्रवण

दोनों ही माँ कह कर बुलाते हैं

और मन को असीम सुख दे जाते हैं

कल हैं जन्म दिन

मेरे श्रवण का

सो उसको आशीष हैं मेरी

की वो जिन्दगी मे जो चाहे वो पाये

नहीं मिली मै दोनों से

पर जो सुख उनसे मैने पाया हैं

वो असीम हैं

और उसके लिये हर दुआ

कुछ कम हैं

आप भी दे आशीष

श्रवण को

उसके १८ वर्ष मे

श्रवण ने अपने ब्लॉग पर मेरी बहुत सी कविताओं को अपनी समझ से हिन्दी से इंग्लिश मे ट्रांसलेट किया हैं । ये उसकी इच्छा थी की उसके जन्मदिन पर मे इस ब्लॉग पर उसके नाम से कविता दूँ , सो लिख दी लेकिन कमलेश मदान स्वत ही याद आगये

Wednesday, July 15, 2009

बस एक अल्पविराम लेने को अब जी चाहता हैं

आज कल मन करता हैं
कि एक अल्प विराम आजाये
जिन्दगी कि
साँसों कि
रफ़्तार थम जाए
कोई स्पंदन ना महसूस हो
सब कुछ रुक जाये
बस ठहर जाये
जो जैसा हैं जहाँ हैं
वैसा ही
और फिर
जब अल्पविराम ख़तम हो तो
जिन्दगी मे
केवल यादे ना हो
अंतरंगता की
अंतरंगता हो
कामना न हो
पूर्णता हो
इसीलिये
बस एक अल्पविराम
लेने को अब जी चाहता हैं

Wednesday, July 08, 2009

चुटकियाँ

चुटकियाँ जो काटते हैं
शालीनता का मुलम्मा ओढ़ कर
वो भूल जाते हैं
की पाँच उँगलियों की छाप
हर मुलम्मे को उतार देती हैं
और रह जाता हैं नंगा शरीर
और उससे भी ज्यादा नंगा मन
कपडे बस तन ढकते हैं
कपड़ो मे मन ढकने की ताकत नहीं होती
सभ्यता अगर कपड़ो से आती
तो हर सफेदपोश सभ्य ही होता

Saturday, July 04, 2009

यादो का कबाड़

मेरे साथ बिताये पल
तुमको याद नहीं होगे

पर शायद याद होगा

वो चाबी का गुच्छा
वो दो आम
वो आईस क्रीम
वो किताबे
जो मै तुम्हारे लिये लाई थी
वो शर्ट जो तुमने मुझसे
अपने लिये खरीदवाई थी
वो कालीन जो तुमने
मुझ से मंगवाया था
और
वो गमला जो पैंट करके
अपने हाथो से तुमने मुझे दिया था
या वो किताब जो तुम मेरे लिये लाये थे

या फिर कहीं यादो मै होगी वो
कविता जो तुमको पसदं थी
और
तुमने मुझे चिट्ठी भेज कर पढ़वाई थी
और
मैने अपनी हस्त लिपि मै लिख कर
उसको फ्रेम जड़वा कर तुमको
वापस भिजवाई थी

अब ये सब तो जरुर याद होगा तुमको
चाहे मेरे साथ बिताये पल याद हो ना हो

भौतिक चीजों का यही फायदा होता हैं
कहीं न कहीं कबाड़ की तरह
हमेशा साथ तो रहती हैं

साथ बिताये पलो का क्या
गुज़रा वक़्त होते हैं
कभी वापस नहीं आते

Tuesday, June 23, 2009

बस ऐसे ही

कविता अगर बनती होती शब्दों से

तो हर लेखक कवि होता

कविता के लिये शब्द नहीं

भाव चाहिये

और भाव के लिये

कोई भाव देने वाला चाहिये

Saturday, June 13, 2009

दूरियाँ कमजोरियाँ मजबूरियाँ

मजबूरियाँ

नहीं

कमजोरियाँ

लाती हैं संबंधो मे

दूरियाँ

रिश्ता

कोई भी

कैसा भी

क्यूँ ना हो

डोर हैं

बस नेह की

कमजोरियां

उसको तोड़ती हैं

और

मजबूरियों की गांठे

नहीं जोड़ सकती

कोई भी रिश्ता

जो टूट गया हैं

कमजोरियों से

Thursday, June 04, 2009

हमे तुम्हारा प्यार नहीं तुम्हारा कर्तव्य चाहिये

पुरानी पीढी बोली

नयी पीढी से

तुम क्या जानो

हमने क्या क्या किया हैं अपने

माता पिता के लिये

अब अगर करनी को कथनी का

साक्ष्य चाहिये

तो करनी और कथनी के अन्तर को

हर पुरानी पीढी

नयी पीढी को

समझाती ही रहेगी

श्रवण कुमारो की तादाद

पीढी दर पीढी

साक्ष्य के लिये

धूल भरे रास्तो पर

चलती रहेगी

बच्चे कभी जवान नहीं

सीधे बूढे ही बनेगे

और हर नयी पीढी के कर्मो को

पुरानी पीढी रोती रहेगी

हमने तुम्हे पैदा किया

तुम हमको ढोते रहो

क्युकी हमे तुम्हारा

प्यार नहीं तुम्हारा कर्तव्य चाहिये

Saturday, May 30, 2009

सबके लिये क्यूँ नहीं हैं

कम उम्र विवाहिता
माँ नहीं बना चाहती
समाज कहता हैं
नहीं गर्भपात नहीं करवा सकती

कम उम्र अविवाहिता
माँ बनना चाहती हैं
समाज कहता हैं
नहीं गर्भपात करवा दो

बच्चे का आना
खुशी अगर हैं
माँ बनना खुशी अगर हैं

तो सबके लिये क्यूँ नहीं हैं

{ बालिका वधु सीरीयल की आज की कड़ी देखकर बस यही समझ आया }

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

Friday, May 29, 2009

सप्तपदी अधूरी ही रही

पहला कदम मजबूर हुए तुम
दूसरा कदम दूर हुए तुम
तीसरा कदम ओझल हुए तुम
चौथा कदम बिसर गए हम
और
सप्तपदी अधूरी ही रही

Monday, May 25, 2009

बस ऐसे ही बस यूँही

आंसूं ही बस अपने होते हैं
इसीलिये तो लोग अकेले मे रोते हैं

कमेंट्स यहाँ दे

Sunday, May 24, 2009

जिन्दगी का सच

रास्ता
रूकावटे
भटकाव

रास्ता
रूकावटे
थकान


रास्ता
रूकावटे
मंजिल


जिन्दगी का सच
सबकी नियति
चलना

Monday, May 18, 2009

जिन्दगी

जिंदगी

महसूस हुई

तो जी ली

ना महसूस हुई

तो काट ली

Thursday, May 14, 2009

बेटे जैसी नहीं होती हैं बेटियाँ

मेरी बेटी किसी बेटे से कम नहीं
कह कर कब तक
बेटी को बेटे से कमतर मानोगे
और
कब बेटी को सिर्फ़ और सिर्फ़ इस लिये चाहोगे
कि वो बेटी तुम्हरी हैं

हर समय बेटे रूपी कसौटी पर
क्यों बेटियों के हर किये को
कसा जाता हैं


और कब तक बेटियों को
अपना खरा पन
बेटे नाम कि कसौटी पर
घिस घिस कर
साबित करना पडेगा

कुछ इतिहास हमे भी बताओ
कुछ कारण यहाँ भी दे जाओ
बेटो ने ऐसा क्या किया
जो बेटी को बेटे जैसा
तुम बनाते जाते हो
और उसके अस्तित्व को
ख़ुद ही मिटाते जाते हो

या
बेटे जैसा कह कर
अपने मन को संतोष तुम देते हो

बेटा और बेटी
दोनों अंश तुम्हारे ही हैं
फिर जैसा कह कर
एक आंख को क्यूँ
दूसरी से नापते हो


बेटे जैसी नहीं होती हैं बेटियाँ
बेटियाँ बस बेटियाँ होती हैं

Wednesday, May 13, 2009

ईश्वर बस बेटी न देना

लडकियां इतना कैसे लड़ लेती हैं
कैसे अपने लिये हर जगह
जगह बना लेती हैं ??
कैसे जीतना हैं उनको
अपना मिशन बना लेती हैं ??
कैसे कम खाना खा कर भी
सेहत सही रहे ये जान लेती हैं ??

बहुत आसन हैं
जब माँ के पेट मे होती हैं
तभी से सुनती हैं
माँ की हर धड़कन कहती हैं
इश्वर लड़की ना देना
जो कष्ट मैने पाया
वो संतान को पाते ना देख पाउंगी
हे विधाता बेटी ना देना

बस यही सुन सुन कर नौ महीने मे
माँ के खून के साथ
सरवाईवल ऑफ़ फीटेस्ट
की परिभाषा
को जीती हैं लडकियां

और

जिन्दगी की आने वाली लड़ाई के लिये
अपने को तैयार कर लेती हैं

हर सफल लड़की के पीछे
होती हैं एक माँ की
कामना की
ईश्वर बस बेटी न देना

कमेंट्स देना की इच्छा हो आए तो यहाँ जाए ईश्वर बस बेटी न देना

Tuesday, May 12, 2009

बस यूँ ही

बदनुमा

जिन्दगी

दाग

मुहब्बत

Sunday, May 10, 2009

बस ऐसे ही बस यूँ ही

रिश्ता

खामोशी
यादे

आवाजे
दलीले

Thursday, May 07, 2009

अनैतिकता बोली नैतिकता से

अनैतिकता बोली नैतिकता से
मंडियों , बाजारों और कोठो
पर मेरे शरीर को बेच कर
कमाई तुम खाते थे
अब मै खुद अपने शरीर को
बेचती हूँ , अपनी चीज़ की
कमाई खुद खाती हूँ
तो रोष तुम दिखाते हो
मनोविज्ञान और नैतिकता का
पाठ मुझे पढाते हो
क्या अपनी कमाई के
साधन घट जाने से
घबराते हों
इसीलिये
अनैतिकता को नैतिकता का
आवरण पहनाते हो
ताकि फिर आचरण
अनैतिक कर सको
और
नैतिक भी बने रह सको

निशब्द शब्दों की निःशब्दता

निशब्द शब्दों की निःशब्दता

Tuesday, May 05, 2009

चाहतें

कुछ हम चाहतें थे

कुछ तुम चाहतें थे

कुछ वो चाहतें थे

काश इतनी जुदा ना होती

हम सबकी चाहतें

Monday, May 04, 2009

तस्वीर

देख कर तस्वीर तुम्हारी
लगा की वक़्त थम गया
फिर याद आया
तस्वीर नहीं निशानी
देख रही थी मै

Saturday, May 02, 2009

पाना खोना

पाने को पा कर खोना

एक उपलब्धि होती हैं

खोने के डर को जीतना

भी एक उपलब्धि होती हैं

पाया ना होता तो
खोया कैसे होता

Friday, May 01, 2009

अभिनव नजदीकियाँ शाश्वत दूरियाँ

ना करना कामना

नज़दीकियों की

दूरियाँ भी

नज़दीकियों से ही आती हैं

वैसे कभी कभी

उनकी दूरियों मे भी

उनकी नजदीकियाँ ही

नज़र हमे तो आती हैं

अभिनव नजदीकियां ही

होती हैं शाश्वत दूरियाँ

Wednesday, April 29, 2009

पाना

ना पा के उनको

पाया हैं जो मैने

पा के भी उनको

ना पा पाती

Sunday, April 26, 2009

जिन्दगी बीत रही हैं

दूर जाने की मज़बूरी

ना मिल पाने की मज़बूरी

कमजोरियों को मज़बूरी बना देना

थी उनकी मज़बूरी या कमजोरी

जिन्दगी बीत रही हैं

समझने मे मेरी

Thursday, April 23, 2009

बारात , खाना और रिश्ते

देर से पहुचती बाराते

ठंडा परसा खाना

ठंडे पड़ते रिश्ते

Wednesday, April 22, 2009

शब्दों के जाल

शब्दों की दस्तक से
शब्दों के दरवाजे खुलते हैं
शब्दों के जाल मे यूही नहीं शब्द फँसते हैं

Tuesday, April 21, 2009

पीड़ा न बंटने की

बंटाने को न बाँट सकने की पीड़ा

तब होती हैं जब तुम पास नहीं होते

Saturday, April 18, 2009

बस ऐसे ही बस यूँही

उफ़ क्या मज़बूरी हैं

दिल मे रहते हैं

पराये कहलाते हैं

Friday, April 17, 2009

बस ऐसे ही बस यूँ ही

उफ़ क्या मज़बूरी हैं

ना आते हैं ना बुलाते हैं

Monday, April 13, 2009

फलसफा

किसी ने कहा
जिन्दगी एक फलसफा हैं
शायद इसीलिये
फल की कामना नहीं करनी चाहिये
सफा होने मे देर नहीं होगी

Wednesday, April 08, 2009

खेल

जिन्दगी की धुप छावं मे

खेल वो खिलाते रहे

हम खेलते रहे

एक बार ही बस

खेल था खेला हमने

और खेल खेलना

वो भूल गए

Monday, April 06, 2009

मै वही रहूंगी जहाँ थी

दूसरो की जिन्दगी संवारने के

खेल मे अपनी जिन्दगी से

जब खेल चुको

तो मुझ तक वापस आ जाना

और अपनी जिन्दगी संवार लेना

मै वही रहूंगी जहाँ थी

Friday, April 03, 2009

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला


हिंदुस्तान मे धर्म हैं
मुस्लिम , सिख , ईसाई
और हिंदू ?

धर्मं नहीं हैं "हिंदू"
हिंदुस्तान मे
हिंदू यानि
हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति
हिंदू यानि सर्वधर्म समन्वयता
हिंदू यानी सर्वधर्म सहिष्णुता

पाकिस्तान मे हिंदू यानी एक धर्म
इटली मे हिंदू यानी एक धर्म
लन्दन मे हिंदू यानी एक धर्म

पर हिंदुस्तान मे हिंदू
यानी
एक जीवन शैली
एक आस्था
एक विश्वास

Thursday, April 02, 2009

आत्मीयता का एक पल

कौन छीन सकता हैं हमसे
नियतिबद्ध हमारी आत्मीयता के पलो को
छोटे लेकिन जिन्दगी से लबालब पल
जिनसे बदल गयी हमारी जिंदगी
सदा के लिये
वो पल जिन्होने समझाया
की अस्वीकृति नहीं बदल सकती हैं
प्यार को भावना को
पल की स्वीकृति से ही
बदल जाती हैं जिन्दगी
तुमने पल को स्वीकार किया
मैने पल को स्वीकार किया
हमारी आत्मीयता के उस एक पल को
और जिन्दगी को जी लिया उस एक पल मे

Monday, March 30, 2009

याद को भूलना

याद रखने के लिये
वक्त नहीं मुहब्बत चाहिये
भूलने के लिये
वक्त नहीं जिद चाहिये

बस यूँही

कभी कभी

कितना सुकूं देता हैं

किसी का

बस यूँही

हमें भूल जाना

Saturday, March 28, 2009

उम्र

उम्र
जी ली तो अपनी
कट गई
तो बेगानी

मै अपनी धरती को अपना वोट दूंगी आप भी दे कैसे ?? क्यूँ ?? जाने

शनिवार २८ मार्च २००९
समय शाम के ८.३० बजे से रात के ९.३० बजे
घर मे चलने वाली हर वो चीज़ जो इलेक्ट्रिसिटी से चलती हैं उसको बंद कर दे
अपना वोट दे धरती को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिये
पूरी दुनिया मे शनिवार २८ मार्च २००९ समय शाम के ८.३० बजे से रात के ९.३० बजे

ग्लोबल अर्थ आर { GLOBAL EARTH HOUR } मनायेगी और वोट देगी अपनी धरती को ।
इस विषय मे ज्यादा जानकारी यहाँ उपलब्ध हैं